________________
(Answer) Jnayak sharir-bhavya sharir vyatirikta dravya shrut (physical shrut other than the body of the knower and the body of the potential knower) is the shrut (scriptural knowledge) written on palm-leaves, bunch of palm-leaves (in book form) or pieces of cloth.
विवेचन-पूर्वोक्त ज्ञायक शरीर और भव्य शरीर द्रव्य श्रुत का लक्षण जहाँ घटित न होता हो उनसे भिन्न यह द्रव्य श्रुत का लक्षण यहाँ निरूपित किया है। पत्रादि पर लिखित श्रुत भाव श्रुत
का कारण तो है किन्तु स्वयं में उपयोग के अभाव में वह द्रव्य श्रुत ही है। ज्ञायक तथा भव्य * दोनों न होने के कारण इसे उभय व्यतिरिक्त-दोनों से भिन्न द्रव्य श्रुत की श्रेणी में रखा है।
Elaboration–The Shrut (scriptural knowledge not included in the aforesaid two categories, jnayak sharir and bhavya sharir dravya shrut, is described here. Although the shrut written on palm-leaves, (etc.) is a source of bhaava shrut (mental or spiritual shrut), in absence of the faculty of contemplation it remains dravya shrut (physical shrut). As it is neither the body of a knower nor that of a potential knower it has been classified as dravya shrut other than these two.
४०. अहवा सुत्तं पंचविहं पण्णत्तं। तं जहा-(१) अंडयं, (२) बोंडयं, 9 (३) कीडयं, (४) वालयं, (५) वक्कयं।
४०. अथवा अन्य प्रकार से सूत्र पाँच प्रकार का कहा है-(१) अंडज, (२) बोंडज, (३) कीटज, (४) वालज, (५) बल्कज।
40. Also, sutra (fiber or yarn) is said to be of five types— (1) of egg origin (silk), (2) of fruit origin (cotton), (3) of insect origin (silk), (4) of hair origin (wool), (5) of bark origin (hessian and linen).
विवेचन-इसी आगम के ५१वें सूत्र में सूत्र के दस पर्यायवाची नाम बताये गये हैं। उनमें प्रथम दो नाम 'सुय' और 'सुत्त' हैं। ‘सुय' का संस्कृत रूप 'श्रुत' और 'सुत्त' का संस्कृत रूप सूत्र होता है। सूत्र का अर्थ शास्त्र तथा सुभाषित (संक्षिप्त गद्यांश या अर्थगर्भित वाक्य) के अतिरिक्त सूत (तंतु) भी होता है। बौद्धिक विकास में अर्थ वैविध्यता को ध्यान में रखकर यहाँ
पर सूत्र के (सूत के अर्थ में) पाँच प्रकार-भेद बताये गये हैं। | श्रुत प्रकरण
The Discussion on Shrut
RROROSHOltoiledh
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org