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चित्र परिचय ४
द्रव्यश्रुत के भेद
( १ ) आगमतः द्रव्यश्रुत - एक व्यक्ति श्रुत का अध्ययन कर रहा है। उसका अर्थ आदि भी समझता है, परन्तु वर्तमान में वार्तालाप में संलग्न होने से श्रुत में उपयोग शून्य है ।
(२) नो आगमतः द्रव्यश्रुत के तीन भेद हैं
(अ) ज्ञायक शरीर - भूतकाल में जिसने श्रुतज्ञान का अभ्यास किया था, शिष्यों को भी श्रुतज्ञान पढ़ाया था, परन्तु वर्तमान में उससे निवृत्त है। जैस - श्रुतज्ञान के अभ्यासी गुरु का मृत शरीर ।
Illustration No. 4
(ब) भव्य शरीर - जिन घड़ों में भविष्य में मधु या घृत भरा जायेगा या भरा जा रहा है, किन्तु अभी तक भरा नहीं है। भविष्य की अपेक्षा उनको वर्तमान में मधु का घड़ा, घी का घड़ा कहा जाता है।
(स) उभय व्यतिरिक्त द्रव्यश्रुत - कागजों व ताड़ पत्रों पर लिखित शास्त्र - भावश्रुत का कारण है। उक्त दोनों प्रकारों से भिन्न होने का कारण इसे उभय व्यतिरिक्त द्रव्यश्रुत कहा जाता है।
- सूत्र ३५ से ३७
TYPES OF DRAVYA-SHRUT
(PHYSICAL-SHRUT)
(1) Agamatah-dravya-shrut-A person is studying the text of Shrut (Sutra). He also understands its meaning but at the moment he is busy talking. Thus his attention is diverted from contemplating the text or its meaning.
(2) No-Agamatah-dravya-shrut is of three types
(a) Jnayak sharir-is a person who had learned the Shrut and taught it to disciples but is no more doing so. For example--the dead body of a learned guru.
(b) Bhavya sharir-Pots in which honey or butter will be filled in future but are empty at present, are conventionally called pots of honey or butter in context of future.
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(c) Ubhaya vyatirikta dravya-shrut-The texts written on palm leaves or paper are instruments of scriptural knowledge. As they are other than the said two they are called ubhaya vyatirikta dravya-shrut (physical-shrut other than the said two).
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- Sutra : 35 to 37
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