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Chirak, (upto-) Pashandasth (as in aphorism 21 ) are called kupravachanik bhaava avashyak (pervert perfect avashyak).
विवेचन - सूत्र में कुप्रावचनिक भाव आवश्यक का स्वरूप बतलाया है। मिथ्या शास्त्रों को मानने वाले चरक, चीरिक आदि पाषंडी यथावसर जो भाव सहित उपयोगपूर्वक यज्ञ आदि क्रियायें करते हैं, वह कुप्रावचनिक भाव आवश्यक है।
मिथ्या शास्त्रों को मानने पर भी चरक आदि द्वारा निश्चित रूप से किये जाने से यज्ञ आदि आवश्यक रूप हैं तथा इनके करने वालों की इन क्रियाओं में उपयोग एवं श्रद्धा होने से भावरूपता भी है। किन्तु इनका आधार मिथ्या शास्त्र होने से इन क्रियाओं को कुप्रावचनिक भाव आवश्यक कहा है।
Elaboration-This aphorism explains the meaning of kupravachanik bhaava avashyak (pervert perfect avashyak). The rituals like yajna performed with sincere involvement from time to time by heretics like Charak who believe in heretical scriptures are called pervert perfect avashyak.
In spite of their belief in pervert scriptures the yajna like rituals are accepted as obligatory duties by the heretics and they also have sincere involvement in them, thus they indeed are perfect avashyak. But because their basis is pervert scriptures they are called pervert perfect avashyak.
(३) लोकोत्तरिक भाव आवश्यक
२८. से किं तं लोगोत्तरियं भावावस्सयं ?
लोगोत्तरियं भावावस्सय-जण्णं इमं समणे वा समणी वा सावए वा साविया वा तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तदप्पियकरणे तब्भावणाभाविए अण्णत्थ कत्थइ मणं अकरेमाणे उभओकालं आवस्सयं करेंति, से तं लोगोत्तरियं भावावस्तयं । से तं नोआगमतो भावावस्सयं । से तं भावावस्तयं ।
२८. ( प्रश्न) लोकोत्तरिक भाव आवश्यक क्या है ?
(उत्तर) जो ये श्रमण, श्रमणी श्रावक, श्राविकायें दत्तचित्त होकर मन की एकाग्रता के साथ, शुभ लेश्या एवं अध्यवसाय से युक्त, यथाविधि क्रिया को करने के लिए उद्यत अध्यवसायों से सम्पन्न होकर, तीव्र आत्मोत्साहपूर्वक आवश्यक के अर्थ में उपयोगयुक्त
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The Discussion on Essentials
आवश्यक प्रकरण
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