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जाणगसरीर-भवियसरीरवइरित्तं दव्यावस्सयं। से तं नोआगमतो दवावस्सयं। से तं दवावस्सयं।
२२. (प्रश्न) लोकोत्तरिक द्रव्य आवश्यक क्या है ? (उत्तर) लोकोत्तरिक द्रव्य आवश्यक का स्वरूप इस प्रकार है-जो (साधु) श्रमण के मूल और उत्तर गुणों से रहित हों, छह काय के जीवों के प्रति अनुकम्पा न होने के कारण अश्व की तरह उद्दाम (जल्दी-जल्दी चलने वाले) हों, हस्तिवत् निरंकुश हों, स्निग्ध पदार्थों के लेप से अंग-प्रत्यंगों को कोमल, सलौना बनाते हों, जल आदि से बार-बार शरीर को धोते हों, अथवा तेलादि से केशों का संस्कार करते हों, ओठों को मुलायम रखने के लिए मक्खन लगाने हों, पहनने-ओढ़ने के वस्त्रों को धोते हों और जिनेन्द्र भगवान की आज्ञा की उपेक्षा कर स्वच्छंद विहार करते हों, फिर भी प्रातःसायंकाल दोनों काल आवश्यक करने के लिए उपस्थित हों तो उनकी वह क्रिया लोकोत्तरिक द्रव्य आवश्यक है।
इस प्रकार यह ज्ञायक शरीर-भव्यशरीर तथातद् व्यतिरिक्त द्रव्य आवश्यक का स्वरूप है। यह नो-आगमतः द्रव्य आवश्यक का निरूपण हुआ। (3) LOKOTTARIK DRAVYA AVASHYAK
22. (Question) What is Lokottarik dravya avashyak (spiritual physical avashyak) ?
(Answer) Lokottarik dravya avashyak (spiritual physical avashyak) is explained thus—There are ascetics who are devoid of the basic and auxiliary attributes of a shraman (Jain ascetic), in absence of any compassion for six lifeforms who gallop (like a horse), who are unrestrained like an elephant, who make every part of body delicate and smooth by rubbing oily preparations, who often wash their body with water, who rub oil to their hair, who apply butter to lips to keep them soft, who wash their dress and other clothes, and who wander around freely ignoring the teachings of the Jina. (While having such wayward ways-)
when they still proceed to indulge in obligatory duties १ अनुयोगद्वार सूत्र
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Illustrated Anuyogadvar Sutra
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