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विशेष शब्दों के अर्थ-चरग (चरक)-समुदाय रूप में एकत्रित होकर भिक्षा माँगने वाले। चीरिग (चीरिक)-मार्ग में पड़े वस्त्र खण्डों व चिथड़ों को पहनने वाले। चम्मखंडिय (चर्मखण्डिक)-चमड़े को वस्त्र रूप में पहनने वाले। भिछुडग (भिक्षोण्डक)-भिक्षा में प्राप्त अन्न से ही उदर-पूर्ति करने वाले। पंडुरंग (पाण्डुरंग)-शरीर पर भस्म-राख का लेप करने वाले।
गोयम (गौतम)-बैल को कौड़ियों की मालाओं से विभूषित करके उसकी विस्मयकारक चाल दिखाकर भिक्षावृत्ति करने वाले ।
गोव्वइय (गोव्रतिक)-गोव्रत का पालन करने वाले। ये गायों के मध्य में रहने की इच्छा से गायें जब गाँव से निकलती हैं तब उनके साथ ही निकलते हैं, वे जब बैठती हैं तब बैठते हैं, जब खड़ी होती हैं तब खड़े होते हैं, जब चरती हैं तब कन्द, मूल, फल आदि का भोजन करते हैं और जब जल पीती हैं तब जल पीते हैं।
गिहिधम्म (गृहिधर्मा)-गृहस्थ धर्म ही श्रेयस्कर है, ऐसी जिनकी मान्यता है।
धम्मचिंतग (धर्मचिन्तक)-याज्ञवल्क्य और ऋषि प्रणीत धर्मसंहिता आदि के अनुसार धर्म का चिन्तन और तदनुसार दैनिक आचरण करने वाले।
अविरुद्ध (अविरुद्ध)-देव, नृप, माता-पिता और तिर्यंचादि का बिना किसी भेदभाव के एक-सा विनय करने वाले। विरुद्ध (विरुद्ध)-पुण्य, पाप, परलोक आदि को नहीं मानने वाले अक्रियावादी।
वुड्ढ सावग (वृद्ध श्रावक)-ब्राह्मण। प्राचीनकाल की अपेक्षा इनमें वृद्धता मानी है क्योंकि भरत चक्रवर्ती ने अपने शासनकाल में देव, धर्म, गुरु का स्वरूप सुनाने के लिए इनकी स्थापना की थी। अथवा वृद्धावस्था में दीक्षा अंगीकार करके तपस्या करने वाले श्रावक।
पासंडत्था (पाषण्डस्थ)-पाषण्ड अर्थात् कुव्रतों का पालन करने वाले। इंद (इन्द्र)-देवताओं का राजा। खंद (स्कन्द)-कार्तिकेय-महेश्वर का पुत्र। रुद्द (रुद्र)-महादेव। सिव (शिव)-व्यंतरदेव विशेष। वेसमण (वश्रमण)-कुबेर, धनरक्षक यक्ष-विशेष। आवश्यक प्रकरण
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