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अन्य देव-देवियाँ दक्षिण दिशा के सोपानो से चढते है और अपने-अपने पूर्व निश्चित भद्रासनो पर - यथाक्रम बैठ जाते है। चढने-उतरने के लिए अलग-अलग मार्गो की व्यवस्था और बैठने के लिए
सिहासन व भद्रासनो की पद अनुक्रम से रचना सभा-मर्यादा और सभा-स्थल की व्यवस्था का एक अत्यन्त विकसित उच्च सभ्यता व श्रेष्ठ सस्कृति का परिचय देती है।
Elaboration-In the two aphorisms, the order in which Suryabh Dev and the other gods and goddesses of equal status in his command entered the aerial vehicle is worthy of special consideration. Suryabh Dev enters from the east and accepts the mounted throne, thereafter the gods of om identical status follow the steps in the north and other gods and you goddesses the steps in the south and occupy their respective seats. The proper arrangement for riding and getting down the vehicle, the earmarking of separate routes, the location of seats according to status, the * proper decorum in the vehicle depicts a fully developed code and presents a picture of culture of highest order. विमान का प्रस्थान वर्णन
५८. तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स तं दिव्वं जाणविमाणं दुरूढस्स समाणस्स अट्ठ-मंगलगा पुरतो अहाणुपुबीए संपत्थिता, तं जहा-सोत्थिय-सिरिवच्छ जाव दप्पणा।
५८. उस दिव्य यान-विमान पर सूर्याभदेव आदि देव-देवियों के आरूढ हो जाने के पश्चात् अनुक्रम से आठ मंगल उसके सामने चले। अर्थात् सबसे आगे अष्ट मंगल रचना थी। जैसे-स्वस्तिक, श्रीवत्स यावत् दर्पण। DESCRIPTION OF DEPARTURE OF THE AERIAL VEHICLE (VIMAN)
58. When Suryabh Dev and other gods and goddesses occupied * their seats in the aerial vehicle the eight auspicious symbols started moving in their respective order. Swastik was the first and mirror sett was the last among them.
५९. तयणंतरं च णं पुण्णकलसभिंगार दिव्वा य छत्तपडागा स चामरा दंसणरतिया-आलोयदरिसणिज्जा वाउद्घयविजयवेजयंतीपडागा ऊसिया गगणतलमणुलिहंती पुरतो अहाणुपुबीए संपत्थिया।
५९. आठ मंगल द्रव्यों के अनन्तर पूर्ण कलश, भृगार-(मांगलिक झारी) चामर सहित दिव्य छत्र, पताका तथा इनके साथ गगन तल का स्पर्श करती हुई अतिशय सुन्दर,
आलोकदर्शनीय-(प्रस्थान करते समय मांगलिक होने के कारण दर्शनीय) और वायु से Hot फहराती हुई एक बहुत ऊँची विजय-वैजयंती नामक पताका अनुक्रम से उसके आगे चली। सूर्याभ वर्णन
Description of Suryabh Dev
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