________________
५५. उस दिव्य यान-विमान की रचना करने के पश्चात् आभियोगिक देव सूर्याभदेव के पास आया। आकर सूर्याभदेव को दोनों हाथ जोडकर आज्ञापालन होने की अर्थात् यान-विमान बनकर तैयार होने की सूचना दी। INFORMATION ABOUT COMPLETION OF WORK
55. After completing the celestial aerial vehicle, the Abhiyogic pe god came to Suryabh Dev. He folded his hands and informed him that his orders regarding preparing the celestial vehicle had been complied with. ___ विवेचन-सूर्याभदेव के लिए जिस विशाल यान-विमान की रचना का वर्णन प्रस्तुत आगम मे है वह वास्तुकला की दृष्टि से अनूठा और आश्चर्यकारक है। विमान-निर्माण की इतनी कलात्मक सौन्दर्ययुक्त
और सुविधापूर्ण तकनीक-प्रविधि आज के विकसित यान विज्ञान के लिए भी आश्चर्यकारक है और * आज तक अतरिक्ष वैज्ञानिक ऐसे अद्भुत विशाल यान-विमान का निर्माण नही कर पाये है। यह वर्णन उनके सामने एक अत्यन्त विकसित यान निर्माण कला की परिकल्पना अवश्य प्रस्तुत करेगा।
Elaboration—The description about the construction of gigantic celestial aerial vehicle for Suryabh Dev in the present scripture is unique and wonderful from the point of view of architecture. The developed technique in construction of celestial vehicle is a challenge to the modern science of architecture in providing all the grandeur and all the comforts. Till today, the space scientists have not been able to prepare a unique gigantic aerial vehicle of such type. This description will certainly present to them an image of extremely developed engineering skill of constructing aerial vehicles. विमान में आरोहण
५६. तए णं से सूरियाभे देवे आभिओगस्स देवस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हट्ट जाव हियए दिव्वं जिणिंदाभिगमणजोग्गं उत्तरवेउवियरूवं विउव्वति।
विउवित्ता चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं, दोहि अणीएहिं, तं जहागंधव्वाणीएण य णट्टाणीएण य सद्धिं संपरिडे. तं दिव्वं जाणविमाणं अणुपयाहिणीकरेमाणे पुरथिमिल्लेणं तिसोपाणपडिरूवएणं दुरूहति, दुहित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे।।
५६. आभियोगिक देव द्वारा दिव्य यान-विमान के निर्माण के समाचार सुनकर सूर्याभदेव हर्षित, संतुष्ट यावत् प्रफुल्ल हृदय हुआ। उसने जिनेन्द्र भगवान के सम्मुख गमन • करने योग्य दिव्य उत्तरवैक्रिय रूप की विकुर्वणा की।
Ta
सूर्याभ वर्णन
(57)
Description of Suryabh Deve
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org