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२९. उन तोरणो के ऊपर निर्मल यावत् अत्यन्त शोभनीय रत्नों से बने हुए अनेक छत्रातिछत्रो (छत्र के ऊपर दूसरा छत्र), पताका पर पताकाएँ, घंटायुगल, श्वेतकमल कुमुद, * नलिन, सुभग, सौगन्धिक, पुंडरीक, महापुंडरीक, शतपत्र, सहस्रपत्र कमलों के झुमके लटकाये गये थे।
29. Up above the festoons, there were clean umbrellas one above ke the other, flags one above the other, bells, white lotus including
kumud, nalin, subhag, saugandhik, white lotus, the giganitic white lotus, the lotus having hundred leaves, the lotus having a thousand leaves. They were made of extremely attractive gems. विमान का अन्तर भाग
३०. तए णं से आभिओगिए देवे तस्स दिव्वस्स जाणविमाणस्स अंतो बहुसमरमणिचं भूमिभागं विउव्वइ। से जहाणामए आलिंगपुक्खरे इ वा, मुइंगपुक्खरे इ वा, परिपुण्णे
सरतले इ वा, करतले इ वा, चंदमंडले इ वा, सूरमंडले इ वा, आयंसमंडले इ वा, * उरभचम्मे इ वा, वसहचम्मे इ वा, वराहचम्मे इ वा, वग्घचम्मे इ वा, छगलचम्मे इ वा,
दीवियचम्मे इ वा, अणेगसंकुकीलगसहस्सवितते। ___णाणाविह पंचवन्नेहिं मणीहिं उवसोभिए आवड-पञ्चावड-सेढि-पसेढि-सोत्थियसोवत्थिय-पूसमाणव-वद्धमाणग-मच्छंडग-मगरंडग-जार-मार-फुल्लावलिपउमपत्त-सागर-तरंग-वसंतलय-पउमलय-भत्तिचित्तेहिं सच्छाएहिं सप्पभेहिं - समरीइएहिं सउञ्जोएहिं णाणाविह-पंचवण्णेहिं मणीहि उवसोभिए तं जहा-किण्हेहि णीलेहिं लोहिएहिं हालिद्देहिं सुकिल्लेहिं।
३०. सोपानो आदि की बाह्य रचना करने के पश्चात् उस आभियोगिक देव ने उस दिव्य यान-विमान के अन्दर एकदम समतल रमणीय भूमिभाग-स्थान की रचना की। वह भूभाग ॐ ऐसा समतल और रमणीय था, जैसे-आलिंगपुष्कर (मुरज या किले का बुरज) के ऊपर
का भाग हो अथवा मृदंग-पुष्कर (मृदग के ऊपर का भाग) हो, पूर्ण रूप से भरे हुए सरोवर के ऊपर का भाग हो अथवा हथेली का भाग हो, चन्द्रमडल, सूर्यमंडल, दर्पणमंडल के ऊपर
का अथवा शकु (छोटे कील-स्माल नेल्स) को ठोक और खींचकर चारों ओर से सम किये ॐ गये भेड के, बैल के, सूअर के, सिंह के, बाघ के, बकरी के और भेडिये के चमड़े का ऊपरी 9 भाग हो (ऐसा समतल था)।
रायपसेणियसूत्र
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Rar-paseniya Sutra
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