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२५. इसके पश्चात् आभियोगिक देवो ने सर्वप्रथम उस दिव्य यान-विमान की तीन दिशाओं-पूर्व, दक्षिण और उत्तर मे विशिष्ट शोभा-संपन्न तीन सोपानों-(सीढियों) की रचना
की। वे रूपशोभा-सम्पन्न सोपान पंक्तियाँ इस प्रकार की थीं___"इनकी नेम (नींव अथवा भूमि से ऊपर निकला प्रदेश, वेदिका) वज्र रत्नों से बनी हुई
थी। इनके प्रतिष्ठान (पगथिया) रिष्ट रत्नमय और स्तम्भ सोने-चाँदी के बने थे। इनमें लोहिताक्ष रत्नमयी सूचियाँ-कीलें लगी थीं। वज्र रत्नों से इनकी संधियाँ (साँधे) भरी हुई थीं। चढ़ने-उतरने में अवलम्बन के लिए अनेक प्रकार के मणिरत्नों से बनी इनकी अवलम्बनवाहा-कठहरा (रलिंग) थीं तथा ये सोपान पंक्तियाँ मन को प्रसन्न करने वाली यावत् असाधारण सुन्दर थीं।" । CREATION OF VIMAN (AERIAL VEHICLE)
25. Thereafter, the Abhiyogic gods, first of all constructed three beautiful stairs of the Viman in the east, the south and the north. Those stair-cases were magnificent and their detailed description is as under
“Their foundation was of hard jewels. Their steps were of Risht jewels and the pillars were of silver and gold. They were fixed with nails of Lohitaksh jewels. The joints were filled with Vajra jewels. The railing to assist in going up or coming down was of Pearls. Thus these steps were very pleasant and unique.”
२६. तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरओ पत्तेयं पत्तेयं तोरणं पण्णत्तं, तेसि णं तोरणाणं इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा___ तोरणा णाणामणिमया णाणामणिमएसु थंभेसु उवनिविट्ठसंनिविट्ठा विविहमुत्तन्तरारूवोवचिया विविह-तारारूवोवचिया जाव पासाइया दरिसणिज्जा, अभिरूवा पडिरूवा।
२६. इन दर्शनीय मनमोहक प्रत्येक त्रिसोपान-पक्तियों के आगे तोरण बँधे हुए थे। उन तोरणों का वर्णन इस प्रकार है
“वे तोरण अनेक प्रकार की मणियों से बने हए थे। विविध प्रकार के मणिमय स्तम्भों के ऊपर भलीभाँति निश्चल रूप से बाँधे गये थे कि वे हिल न सकें, निश्चल थे। विविध प्रकार के मोतियो से और सलमा सितारों आदि से भॉति-भाँति के तारा-रूपकों, बेल-बूटों से शोभित हो रहे थे। अतीव मनोहर लगते थे।"
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रायपसेणियसूत्र
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Rar-paseniya Sutra
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