________________
२४. तए णं से आभिओगिए देवे सूरियाभेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे हट जाव हियए करयल-परिग्गहियं जाव पडिसुणेइ जाव पडिसुणेत्ता उत्तरपुरथिमं दिसीभाग अवक्कमति, अवक्कमित्ता वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहणइ, समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई जाव अहाबायरे पोग्गले परिसाउति परिसाडित्ता अहासुहमे पोग्गले परियाएइ परियाइत्ता दोच्चं पि वेउब्विय समुग्धाएणं समोहणित्ता अणेगखंभसयसनिविढे जाव दिव्यं जाणविमाणं विउव्बिउं पवत्ते यावि होत्था।
२४. तत्पश्चात् उस आभियोगिक देव ने सूर्याभदेव के आदेश को सुनकर हर्ष और प्रसन्नता प्रकट की। प्रफुल्ल हृदय हो दोनों हाथ जोड आज्ञा को स्वीकार करके उत्तर-पूर्व
दिशा में आया। वहाँ आकर वैक्रिय समुद्घात किया और समुद्घात करके संख्यात योजन * विस्तार वाला ऊपर-नीचे लम्बा दण्ड बनाया यावत् स्थूल बादर (असार) पुद्गलों को अलग
हटाकर सारभूत सूक्ष्म पुद्गलो को ग्रहण किया, ग्रहण करके दूसरी बार पुनः वैक्रिय
समुद्घात करके अनेक सैकडों स्तम्भों पर सन्निविष्ट आधारित दिव्य यान-विमान की * विकुर्वणा करने मे प्रवृत्त हो गया।
24. After hearing the orders of Suryabh Dev, the Abhiyogic Devlet felt happy. He then clasped his hands indicating that he had accepted the orders in a pleasant manner. He then went in northeast direction. He then performed fluid Samudghat and thus created a rod numerous yojans wide and very long. He then separated gross undesirable atoms and replaced them with subtle
useful atoms. Thereafter he did fluid Samudghat again and auto engaged himself in preparing exquisite Viman standing on
hundreds of pillars. अद्भुत विमान रचना (सोपान रचना)
२५. तए णं से आभिओगिए देवे तस्स दिव्वस्स जाणविमाणस्स तिदिसिं तिसोवाणपडिरूवए विउव्वति, तं जहा-पुरथिमेणं, दाहिणेणं, उत्तरेणं, तेसिं तिसोवाणपडिरूवगाणं इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा____ वइरामया णिम्मा, रिट्ठामय पतिद्वाणा, वेरुलियामया खंभा, सुवण्ण-रुप्पमया * फलगा, लोहितक्खमइयाओ सूईओ, वयरामया संधी, णाणामणिमया अवलंबणा,
अवलंबणबाहाओ य, पासादीया जाव पडिरूवा। सूर्याभ वर्णन
Description of Suryabh Deve
(35)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org