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ॐ २०. तए णं से पायत्ताणियाहिवइ देवे सूरियाभेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे हद्वतुट्ठ जाव
हियए एवं देवा ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ पडिसुणित्ता जेणेव सूरियाभे विमाणे जेणेव सभा सुहम्मा, जेणेव मेघोघ-रसियगंभीर-महुरसद्धा जोयणपरिमंडला सुस्सरा घंटा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तं मेघोघरसित-गंभीर-महुरसद्दाएजोयणपरिमंडलाए सुस्सराए घंटाए तिक्खुत्तो उल्लालेइ।
तए णं तीसे मेघोघ-रसित-गंभीर-महुरसदाए जोयणपरिमंडलाए सुस्सराए घंटाए * तिक्खुत्तो उल्लालियाए समाणीए से सूरियाभे विमाणे पासायविमाणणिक्खुडावडियसद्दघंटापडिसुया-सयसहस्ससंकुले जाए याऽवि होत्था।
२०. तदनन्तर सूर्याभदेव की आज्ञा पाकर वह स्थल-सेनाधिपति देव हृष्ट-तुष्ट यावत् प्रसन्न हृदय हुआ और-“हे देव ! ऐसा ही होगा।" कहकर विनयपूर्वक आज्ञावचनों को स्वीकार किया। फिर सूर्याभ विमान मे जहाँ सुधर्मा सभा थी और उसमें भी जहाँ मेघगर्जनावत् गम्भीर मधुर ध्वनि करने वाली एक योजन विस्तार वाली गोल सुस्वर घटा
थी, वहाँ आया। आकर मेघगर्जना के समान गम्भीर और मधुर ध्वनि करने वाली उस * सुस्वर घंटा को तीन बार बजाया।
तब वह गम्भीर मधुर ध्वनि करने वाला सुस्वर घंटा तीन बार बजाये जाने पर उसकी ध्वनि से सूर्याभ विमान के प्रासादविमानों का कोना-कोना लाखों प्रतिध्वनियो से गूंज उठा।
20. After hearing the orders of Suryabh Dev, the commanding god of land forces felt pleased and assuring his master that “The work shall be done accordingly", he accepted his orders humbly. He then came to the place in Suryabh Viman where there was the
dumble bell whose serene sweet sound could reach upto one yojan. He He then rang that bell thrice.
At the ringing of the dumble bell thrice, every corner of the to palace-like abodes was filled with its echo.
२१. तए णं तेसिं सूरियाभ-विमाणवासीणं बहूणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य एगंतरइ-पसत्त-निच्चप्पमत्ता-विसयसुह-मुच्छियाणं सुस्सरघंटारव-विउलबोलतुरिय-चवल-पडिबोहणे कए समाणे घोसण-कोउहल-दिनकन-एगग्गचित्तउवउत्तमाणसाणं से पायत्ताणीयाहिवई देवे तंसि घंटारवंसि णिसंतपसंतंसि महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणे उग्घोसेमाणे एवं वयासी
रायपसेणियसूत्र
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Rai-paseniya Sutra
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