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(प्याऊ) को बिना किसी उतावली के चतुरता से सब तरफ से सींचता है, इसी प्रकार से सूर्याभदेव के उन आभियोगिक देवो ने आकाश में घुमड-घुमडकर गरजने वाले और बिजलियो की चमचमाहट से युक्त मेघों की विक्रिया करके श्रमण भगवान महावीर के
विराजने के स्थान के आसपास चारों ओर एक योजन गोलाकार भूमि में इस प्रकार से * सुगन्धित गधोदक बरसाया कि जिससे भूमि न जल-मग्न हुई, न कीचड़ हुआ किन्तु
रिमझिम-रिमझिम विरल रूप से बूंदाबांदी होने से उडते हुए रजकण दब गये। इस प्रकार * की मेघ वर्षा करके उस स्थान को निहितरज, नष्टरज, भ्रष्टरज, उपशान्तरज, प्रशांतरज
(अर्थात् सर्वथा धूलरहित) बना दिया। फिर शीघ्र ही मेघ वर्षा को समेट लिया। CREATING CLOUDS THROUGH VAIKRIYA POWER ____16. Thereafter, the said gods did Vaikriya Samudghat second time and created clouds containing water.
Consider a young, expert water-carrier. He ks up * of water, a water tank or a water container. He then irrigates an
orchard deftly from all sides without any undue haste. In the same manner, the Abhiyogic gods created the thundering, whirling clouds in the sky. They moved around and showered fragrant water (gandhodak) in an area upto one yojan in circular shape all around the seat of Bhagavan Mahavir, the area neither became flooded nor muddy. But the dust settled down with these showers. With this _rain they made that area clean, dust-free and levelled. All the dust they had settled nicely. Then the rain was stopped. पुष्प-मेघों की रचना
१७. तच्चं पि वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहणंति पुप्फ-वद्दलए विउव्वंति, से जहाणामए मालागारदारए सिया तरुणे जाव सिप्पोवगए एगं महं पुष्फ-छज्जियं वा पुष्फ-पडलगं वा पुष्फचंगेरियं वा गहाय रायंगणं वा जाव सव्वतो समंता कयग्गह-गहिय-करयल-पन्भट्ठ-विप्पमुक्केणं दसद्धवन्नेणं कुसुमेणं मुक्कपुष्फपुंजोवयारकलियं करेजा। ___ एवामेव ते सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा पुष्फबद्दलए विउव्वंति। खिप्पामेव पतणतणायंति जाव जोयणपरिमंडलं जलय-थलय-भासुरप्पभूयस्स बिंटट्ठाइस्स दसद्धवनकुसुमस्स जाणुस्सेहपमाणमेत्तिं ओहिं वासंति। रायपसेणियसूत्र
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