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समय नगर-रक्षक ने चोर को पकड़कर मेरे सामने उपस्थित किया। उसके गर्दन और दोनों हाथ बंधे थे। उसके साथ चुराई हुई वस्तु और साक्षी-गवाह भी विद्यमान थे। ___ तब मैंने उस चोर को जीवित ही एक लोहे की कुम्भी मे बन्द करवाकर अच्छी तरह लोहे के ढक्कन से उसका मुख ढक दिया। फिर गरम लोहे एवं रॉगे से उस पर लेप कराकर उसे हवा बन्द बना दिया और देखरेख के लिए अपने विश्वासपात्र पुरुषों को नियुक्त कर दिया।
किसी दिन मै उस लोहे की कुंभी के पास गया। वहाँ जाकर मैंने उस लोहे की कुंभी को खुलवाया। खुलवाकर मैंने स्वयं उस पुरुष को देखा तो वह मर चुका था। किन्तु उस लोहकुंभी में राई अथवा सुई जितना भी न कोई छेद था, न कोई विवर था, न कोई अन्तर था और न कोई दरार थी कि जिसमें से उस अन्दर में बन्द पुरुष का जीव बाहर निकल जाता।
यदि उस लोहकंभी में कोई छिद्र यावत दरार होती तो मैं यह मान लेता कि भीतर बन्द पुरुष का जीव बाहर निकल गया है और तब मैं आपकी बात पर विश्वास कर लेता, प्रतीति कर लेता एवं अपनी रुचि का विषय बना लेता-निर्णय कर लेता कि जीव अन्य है और शरीर अन्य है। लेकिन हे भदन्त ! उस लोहकुंभी में जब कोई छिद्र ही नही था, अतः मेरा यह मन्तव्य ठीक है कि जो जीव है वही शरीर है और जो शरीर है वही जीव है। जीव शरीर से भिन्न नहीं और शरीर जीव से भिन्न नहीं है। TEST OF INDENTITY OF JIVA AND SHAREER __248. After hearing the reply of Keshi Kumar Shraman, king Pradeshi said thus___ “Reverend Sir ! In order to prove that Jiva (soul) and body are different entities, you have narrated the reasons for gods not coming (to human world). But it is simply an imaginative illustration created by intellect. But Reverend Sir ! (I tell the incident of my personal experience) Once I was in my outer councilhall. Many heads of departments, many incharge of inflicting punishment, king, gods, masters, maandvik, family members, chiefs, nobles, army chief, traders, ministers, prime ministers, astrologers, security incharge of the council-hall, servants, whole time servants, citizens, businessmen, spies, officers responsible for guarding border were also with me. At that time the city guard रायपसेणियसूत्र
Rai-paseniya Sutra
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