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________________ (१) तत्काल उत्पन्न देवता वहाँ के भोगो से मूर्छित नही होकर सोचता है कि जिन गुरुजनो के उपदेश * व उपकार के प्रभाव से मुझे यह देवऋद्धि प्राप्त हुई है। मै वहाँ जाकर अपने परम उपकारी गुरुओ को * वन्दना-नमस्कार करूँ। (२) मनुष्यलोक मे विचरने वाले, उत्कृष्ट ज्ञानी, उत्कृष्ट तपस्वी श्रमणो को देखकर उनकी वन्दना, सेवा करने का महान् फल समझकर वे भोगो को छोडकर भी आ जाते है। (३) अपने पूर्वभव सम्बन्धी माता, पिता, पुत्र आदि सम्बन्धी जनो को धर्म के प्रति आस्था उत्पन्न कराने या प्रतिबोध देने की इच्छा से कामभोगो की आसक्ति त्यागकर भी आते है। (४) मनुष्यलोक मे किसी के साथ वचनबद्ध हो चुके हो, प्रतिज्ञा कर चुके हो कि इसमे से जो पहले x च्युत हो जाये वह उसे सबोध देने के लिए आयेगा। उस प्रतिज्ञा से बँधा हुआ देव भोगो की आसक्ति छोडकर भी आता है। विशेषावश्यक भाष्य (गाथा १८७५-१८७७, स्थानाग, स्थान ४) मे देवलोक से नही आने के पाँच कारण बताये है, जिनमे चार कारण तो उक्त ही है। पाँचवाँ कारण बताया है-देवता स्वतत्र होते है, वे मनुष्यो के किसी कार्य के अधीन या पराधीन नहीं होते। ____ साथ ही वहाँ देवताओ के मनुष्यलोक मे आने के नौ कारण भी बताये है (१) अरिहतो के जन्म, दीक्षा, कैवल्य व निर्वाण महोत्सव पर। (२) भक्ति के वशीभूत होकर। (३) मन का सन्देह/शका दूर करने के लिए। (४) पूर्वजन्म के मित्र, पुत्र आदि के गहरे अनुराग के वश। (५) पूर्वजन्म मे की गई प्रतिज्ञा या वचन से बँधे होने के कारण प्रतिबोध देने के लिए। (६) तपस्या आदि उत्कृष्ट गुणो से आकृष्ट होकर। (७) पूर्वजन्म के वैर-विरोध के कारण उसे पीडा देने के लिए। (८) पूर्वजन्म के किसी मित्र आदि पर अनुग्रह करने के लिए। (९) हास्य-कुतूहल आदि वश होकर। आवश्यकनियुक्ति मे आचार्य भद्रबाहु ने बताया है- “देव मोहनीय कर्म तथा सातावेदनीय कर्म के उदय के कारण अधिक कामासक्त होते है। अप्रत्याख्यान मोहनीय के कारण वे कामभोग का त्याग नही कर सकते (उनको नही आ पाने का यह भी कारण है)।" ____ दीघनिकाय मे कुमार काश्यप ने भी पयासि राजा के प्रश्न पर इसी प्रकार का उदाहरण दिया है2 “जैसे कोई पुरुष दुर्गधमय कूप मे पडा हो, उसका शरीर मल से लिप्त हो, उस पुरुष को कोई बाहर २ निकालकर उसे स्नान आदि कराके सुगधित तेल, चन्दन आदि का विलेपन करके फूलो से शृगारित करने के बाद पुन उसे उसी दुर्गन्धित कूप मे प्रवेश करने के लिए कहे तो क्या वह उस दुर्गन्धमय मल-मूत्र के कूप में वापस घुसेगा?" केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा ( 333 ) Keshı Kumar Shraman and King Pradeshi * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
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