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य देवीहि यसद्धिं संपरिवुडे, महयाऽऽहय - नट्ट गीय - वाइय - तंती - ताल - तुडिय - घण - मुइंग पडुप्पवाइय-रवेणं दिव्याई भोग - भोगाई भुंजमाणे विहरइ ।
इमं च णं केवलकप्पं जम्बुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे आभोएमाणे पासइ ।
७. उस काल और उस समय में सौधर्मकल्प के सूर्याभ विमान की सुधर्मा नामक सभा सूर्याभ सिहासन पर आसीन सूर्याभदेव चार हजार सामानिक देवों, अपने-अपने परिवार सहित चार अग्रमहिषियों-पटरानियों, तीन परिषदाओ, सात सेनाओं, सात सेनापतियों, सोलह हजार आत्मरक्षक देवों एवं और दूसरे भी सूर्याभ विमानवासी देवों एवं देवियों से परिवृत दक्षपुरुषो द्वारा जोर-जोर से बजाये जा रहे - किये जा रहे नाट्य, गीत, वाद्य, तन्त्री, तल, ताल त्रुटित, घन मृदंग के स्वरों को सुनते हुए दिव्य भोगों को भोग रहा था।
तब उसने इस केवलकल्प (सम्पूर्ण) जम्बूद्वीप नामक द्वीप को विपुल - विमल अवधिज्ञान से निहारते - निहारते देखा ।
THE LOCATION OF SURYABH DEV
7. At that time, during that period, Suryabh Dev was in Sudharma assembly in Suryabh Viman of Saudharm-kalp (the first Devlok). He was seated on Suryabh throne, four thousand Samanik Dev (celestial beings of the same status) along with their families, the four chief queens, the three assemblies, seven armies, their seven chiefs, sixteen thousand angels serving as body guard and other gods and goddesses in Suryabh Viman were also near him. The angels expert in dancing, singing, drumming and playing other musical instruments were exhibiting there skills. Suryabh Dev was thus enjoying the music and theatrical performances of celestial order.
He then with his far-reaching and pure extra-sensory knowledge saw the entire Jambu Dveep.
विवेचन - इस सूत्र में सूर्याभदेव के सभा - वैभव का वर्णन है । जैसे
सामानिक देव-ये सभी देव विमानाधिपति देव के आज्ञाधीन रहते हुए समान द्युति, वैभव आदि से सम्पन्न होते है, इसलिए सामानिक कहलाते है । इनको भाई आदि के तुल्य आदर-सम्मान दिया जाता है।
अग्रमहिषी- राजतिलक-सम्पन्न राजा की पत्नी महिषी और शेष अन्य स्त्रियॉ भोगिनी कहलाती है । अपने परिवार की अन्य सभी पलियो मे उसकी प्रधानता बताने के लिए महिषी के साथ 'अग्र' विशेषण का प्रयोग किया जाता है।
सूर्याभ वर्णन
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Description of Suryabh Dev
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