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________________ ___ “O loveable of gods ! Kindly prepare immediately a horse-drawn chariot fitted with canopy and four bells which has the capacity to move at fast speed. After compliance intimate me.” The family servants complying the orders of Chitta Saarthi, presented the horse-drwan chariot after decorating it with umbrella and others. They then intimated compliance. (ख) तए णं से चित्ते सारही कोडुंबियपुरिसाण अंतिए एयमढे जाव हियए। हाए, कयबलिकम्मे, कयकोउय-मंगलपायच्छित्ते, सन्नद्धबद्धवम्मियकवए, उप्पीलियसरासणपट्टिए, पिणद्धगेविज्ञविमलवर चिंधपट्टे, गहियाउहपहरणे तं महत्थं जाव पाहुडं गेण्हइ, जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, चाउग्घंटं आसरहं दुरूहेति। ___ बहूहिं पुरिसेहि सन्नद्ध जाव गहियाउंहपरहणेहिं सद्धिं संपरिबुडे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरेज्जमाणेणं महया भडचडगर-रहपहकरविंदपरिक्खित्ते साओ गिहाओ णिग्गच्छइ, .सेयवियं नगरिं मझमझेणं णिग्गच्छइ, सुहेहिं वासेहिं पायरासेहि नाइविकिट्टेहिं अंतरा वासेहिं वसमाणे वसमाणे केइयअद्धस्स जणवयस्स मज्झमझेणं जेणेव कुणालाजणवए जेणेव सावत्थी नयरी तेणेव उवागच्छइ, सावत्थीए नयरीए र मझमझेणं अणुपविसइ। जेणेव जियसत्तुस्स रण्णे गिहे, जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, तुरए निगिण्हइ, रहं ठवेति, रहाओ पच्चोरुहइ। (ख) तब कौटुम्बिक पुरुषों की सूचना पाकर चित्त सारथी प्रसन्न हुआ। उसने स्नान किया, बलिकर्म किया। कौतुक-(ललाट पर तिलक, बिन्दी आदि) मंगल प्रायश्चित्त किये और फिर अच्छी तरह से शरीर पर कवच धारण किया। धनुष पर प्रत्यचा चढाई, गले में ग्रैवेयक और अपने श्रेष्ठ सकेतपट्टक (प्रतीक चिन्ह-सिंबल) को धारण किया एवं आयुध तथा प्रहरणों-शस्त्रों को साथ लेकर वह महार्थक उपहार लिया और जहाँ चार घंटों वाला अश्व-रथ खडा था, वहाँ आया। आकर उस अश्व-रथ पर आरूढ हुआ। ___ तत्पश्चात् आयुध एव प्रहरणों से सुसज्जित बहुत से पुरुषों को साथ लिए कोरट पुष्प की मालाओ से विभूषित छत्र को धारण किया। सुभटों और रथों के समूह के साथ अपने घर से प्रस्थान किया और सेयविया नगरी के बीचोंबीच से निकलकर सुखपूर्वक रात्रि-विश्राम, प्रातः कलेवा आदि व्यवस्था साथ लिए पास-पास अन्तरावास (पडाव) करते और जगह-जगह ठहरते-ठहरते केकय-अर्ध जनपद के बीचोंबीच से होता हुआ जहाँ कुणाला जनपद था, जहाँ श्रावस्ती नगरी थी, वहाँ आ पहुँचा। श्रावस्ती नगरी के मध्य भाग KHAia रायपसेणियसूत्र (248) Ral-paseniya Sutra o Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
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