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• अपुनरुक्त पुनरुक्ति दोषरहित स्तुति करके सात-आठ पग पीछे हटा, फिर बायाँ घुटना ऊँचा
किया और दायाँ घुटना जमीन पर टिकाकर तीन बार मस्तक को भूमितल पर नमाया, फिर • घुटना कुछ ऊँचा उठा तथा मस्तक ऊँचा कर दोनों हाथ जोडकर आवर्त्तपूर्वक मस्तक पर " अजलि करके बोला
(b) Thereafter, he took an incense-stand giving out scented smell of black agar, kundrushk, turushk and suchlike incense substances and moved the incense-stand around the idols spreading the incense all around. That incense-stand was studded with Chandrakant and Vajra gems, its handle was of Vaidurya gems and it was made of gold, gems and jewels, many pictures were drawn on it. Thereafter, he praised the Tirthankars with a hymn of 108 verses having sentiments and meaning strictly according to scriptures and which were totally devoid of repetition. Then he moved seven-eight steps backwards. He then touched the ground with his right knee, raised the left knee upwards (facing sky) touched the ground three
times with his forehead, folded his hands, moved them around in a my circle, placed them at his forehead and then said. अरिहंत-सिद्ध भगवन्तों की स्तुति
१९९. नमोऽत्यु णं अरिहंताणं भगवंताणं, आइगराणं, तित्थगराणं सयंसंबुद्धाणं, पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, पुरिसवरपुण्डरीआणं, पुरिसवरगंधहत्थीणं, लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं, लोगहिआणं, लोगपईवाणं, लोगपज्जोअगराणं, अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं, बोहिदयाणं, धम्मदयाणं, धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवरचाउरंत-चक्कवट्टीणं, अप्पडिहयवर-नाणदंसणधराणं, विअट्टच्छउमाणं, जिणाणं जावयाणं, तिनाणं तारयाणं, बुद्धाणं बोहयाणं, मुत्ताणं मोइगाणं, सवन्नृणं, सव्वदरिसीणं सिवं, अयलं, अरुअं, अणंतं, अक्खयं, अव्वाबाहं, अपुणरावित्तिसिद्धगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं।
१९९. अरिहंत भगवन्तों को नमस्कार हो, श्रुतचारित्रधर्म की आदि करने वाले * तीर्थंकरों को, स्वयंबुद्धों को-(गुरूपदेश के बिना स्वयं ही बोध को प्राप्त), पुरुषों मे उत्तम,
कर्मशत्रुओं का विनाश करने में पराक्रमी होने के कारण पुरुषों में सिह के समान, सौम्य और लावण्यशाली होने से पुरुषों में श्रेष्ठ पुंडरीक-कमल के समान, अपने पुण्य प्रभाव से
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सूर्याभ वर्णन
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