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________________ (६) तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो-दो चित्ता रयणकरंडगा पन्नत्ता, से जहाणामए रन्नो चाउरंतचक्कवट्टिस्स चित्ते रयणकरंडए वेरुलियमणि-फलिहपडलपच्चोयडे साते पहाते ते पदेसे सब्बतो समंता ओभासति उज्जोवेति तवति पभासति एवमेव ते वि चित्ता रयणकरंडगा साते पभाते ते पएसे सम्बओ समंता ओभासंति, उज्जोति, तवंति पभासंति। तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो-दो हयकंठा, गयकंठा, नरकंठा, किन्नरकंठा, । किंपुरिसकंग, महोरगकंठा, गंधव्यकंठा, उसभकंठा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। ___ तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो-दो पुष्फचंगेरीओ, मल्लचंगेरीओ, चुन्नचंगेरीओ, * गंधचंगेरीओ, वत्थचंगेरीओ, आभरणचंगेरीओ, सिद्धत्थचंगेरीओ, लोमहत्थचंगेरीओ पन्नत्ताओ सब्बरयणामयाओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ। (६) उन तोरणो के आगे चित्रामों से युक्त दो-दो (रत्नकरंडक-रत्नों के पिटारे) रखे हैं। जिस तरह चातुरंत चक्रवर्ती राजा का वैडूर्य मणि से बना हुआ एवं स्फटिक मणि के पटल से ढंका हुआ अद्भुत-आश्चर्यजनक रत्नकरंडक अपनी प्रभा से उस प्रदेश को पूरी तरह से प्रकाशित, उद्योतित, तापित (गर्मी देता है) और प्रभासित करता (चमकाता) है, उसी प्रकार ये रत्नकरंडक भी अपनी प्रभा-कांति से अपने निकटवर्ती प्रदेश को आलोकमय बना देते, प्रकाशित, उद्योतित (चमकता), तापित (गर्मी देना) और प्रभासित (दीप्त) करते हैं। उन तोरणों के आगे दो-दो अश्वकंठ (कंठ पर्यन्त घोडे की मुखाकृति, जैसे१ रत्न-विशेष), गजकंठ, नरकंठ, किन्नरकंठ, किंपुरुषकंठ, महोरगकंठ, गंधर्वकंठ, वृषभकंठ (इनकी मुखाकृति के रत्न) रखे हैं। ये सब अश्वकंठादिक सर्वथा रत्नमय, स्वच्छ, निर्मल 2 यावत् असाधारण सुन्दर हैं। र उन तोरणों के आगे दो-दो पुष्प-चंगेरिकाएँ (फूलो से भरी छोटी-छोटी टोकरियाँ डलियाँ), माल्यचगेरिकाएँ (माला की टोकरियाँ), चूर्ण (सुगन्धित चूर्ण) चंगेरिकाएँ, गन्ध चगेरिकाएँ, वस्त्र चंगेरिकाएँ, आभरण (आभूषण) चंगेरिकाएँ, सिद्धार्थ (सरसों) की चंगेरिकाएँ एवं लोमहस्त (मयूरपिच्छ) चंगेरिकाएँ रखी है। ये सभी टोकरियाँ रनों से बनी हुई, निर्मल यावत् प्रतिरूप-अतीव मनोहर हैं। ___(6) Two jewel boxes each are in front of the festoons. The unique jewel box of Chakravarti (king Emperor) is made of Vaidurya jewels. It is covered with plate studded with crystal gems. It Prastake.sks.ke.sksksksksksksks.ke.slesskelesslesakssakesidese.ske.sie. sessisakese.ske.siksewis ke. sin सूर्याभ वर्णन (123) Description of Suryabh Dev Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
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