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15 I also pay homage to Acharya Govind who, like the mundane 5 wealth of Indra (king of gods), had incomparable wealth of 5
Anuyogs and who had virtues that inspire feelings like $ forgiveness and altruism which are rare even among Indras 4 (kings of gods).
विवेचन-आचार्य गोविन्द का नाम तो प्रसिद्ध अनुयोगधर वाचकों में लिया जाता है किन्तु + इनकी गुरु परम्परा आदि के विषय में कोई सूचना उपलब्ध नही है। निशीथचूर्णि में अवश्य यह है
उल्लेख है कि ये मूलतः एक बौद्ध भिक्षु थे और किसी जैनाचार्य से अनेक बार शास्त्रार्थ में
पराजित होने पर जैन सिद्धान्तों के अध्ययनार्थ जैन साधु के रूप में दीक्षित हुए। गम्भीर अध्ययन के के पश्चात् इनके विचारों तथा श्रद्धा में परिवर्तन आया और सम्यक्त्व जाग्रत होने पर इन्होंने .
पुनः श्रद्धापूर्वक दीक्षा ग्रहण की। अपने अपार श्रुतज्ञान तथा वाचना में अपूर्व गति के कारण
बाद ये वाचनाचार्य बने। ऐसी मान्यता भी है कि इन्होंने आचारांग पर नियुक्ति की रचना भी की 卐 थी जो आज अनुपलब्ध है। ये आचार्य आर्य स्कन्दिल के पश्चात् चौथे युग-प्रधानाचार्य थे। मुनि
श्री पुण्यविजय जी के अनुसार इनका सत्ताकाल विक्रम की ५वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध होना 卐 चाहिए। ___Elaboration-Acharya Govind Although his name finds place it among the famous Vachaks who were experts of Anuyogs, no information about the lineage of his gurus is available. In Nisheeth Churni there is just this mention that he was originally a Buddhist monk who got initiated as a Jain ascetic in order to study Jain tenets, after he was defeated repeatedly by some Jain Acharya in religious debates. After an in depth study he underwent a change in his thoughts and faith. This rise of Samyaktva lead him to re-initiation, this time genuinely. Due to his immense knowledge of scriptures and
unprecedented proficiency in oration he later attained the status of i Vachanacharya. It is said that he also wrote a commentary (Niryukti)
on Acharang which is not available now. He came fourth after Arya
Skandil in the Yuga-pradhanacharya lineage. According to Muni Shri 5 Punyavijay ji his period should be the early part of the 5th century of 15 the Vikram era.
४२ : तत्तो य भूयदिन्नं, निच्चं तवसंजमे अनिविण्णं।
पंडियजण-सम्माणं, वंदामो संजमविहिण्णुं॥ अर्थ और तत्पश्चात् तप और संयम की अनुपालना में सदा खेदरहित, पण्डितजनों में सम्मानित और संयम विधि के निष्णात आचार्य भूतदिन्न को वन्दन करता हूँ। श्री नन्दीसूत्र
( ४८ )
Shri Nandisutra 中断资助戰步步步步皆第5號先验货验货期5岁脂蛋號断覽期中
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