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जब मथुरा में आर्य स्कन्दिल द्वारा आगम-वाचन हुई लगभग उसी समय आर्य नागार्जुन ने फ भी दक्षिण श्रमण संघ को एकत्र कर वल्लभी में वाचना की थी । वाचना के पश्चात् इन दोनों की भेंट नहीं हो सकी अतः वाचना भेद मिटाने का उपक्रम नहीं बन पाया। आर्य नागार्जुन के जीवन की प्रमुख घटनाएँ इस प्रकार हैं - जन्म वी. नि. ७९३ (३२४ वि., २६७ ई.), दीक्षा वी. नि. ८०७, स्वर्गवास वी. नि. ९०४ (४३५ वि., ३७८ ई.) मगध सम्राट् चन्द्रगुप्त व 5 उनके पुत्र समुद्रगुप्त इनके समकालीन थे।
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After that I pay homage to Shri Nagarjunacharya who had absorbed the Anuyogs relating to the Kalik Sutras and the knowledge of the Purvas like Utpad.
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I pay homage to Nagarjun Vachak who embodied the attitudes of sweetness and sympathy, who adhered to the proper observance of the Ogh-shrut or the laid down procedure of systematic detachment, and gradually ascended to the status of Vachak (Vachanacharya).
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विवेचन-आर्य नागार्जुन ढंक नगर के क्षत्रिय संग्रामसिंह के पुत्र थे ऐसी मान्यता है। ये बाल्यावस्था में ही बड़े पराक्रमी और मेधावी थे तथा पादलिप्तसूरि के चमत्कारों से प्रभावित थे। पादलिप्तसूरि तथा आचार्य हिमवन्त दोनों के शिष्य बताये जाते हैं किन्तु कौन इनका दीक्षा - गुरु था और कौन शिक्षा - गुरु इस विषय में स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है । किन्तु पादलिप्तसूरि के काल से इनके काल का मेल नहीं खाता इस कारण उनका शिष्य होने की बात अनुश्रुति ही लगती है।
इन्हें क्रमशः वाचक पद प्राप्त हुआ यह कथन उस समय की आचार्य परम्परा के क्रम को
देखने से समझ में आती है । प्राप्त सूचना के अनुसार आर्य स्कन्दिल, आर्य हिमवान और आर्य नागार्जुन समकालीन और वाचनाचार्य माने गये हैं । उपरोक्त श्लोक के अनुसार नागार्जुन आर्य हिमवन्त के पश्चात् हुए और युग-प्रधान पट्टावली के अनुसार वे आर्य सिंह के पश्चात् युग-प्रधान हुए। कालक्रम के अनुसार ऐसा लगता है कि वी. नि. ८२६ में युग-प्रधान आर्य सिंह के स्वर्गवास के समय आर्य स्कन्दिल को विशिष्ट प्रतिभा सम्पन्न मानकर वाचक पद प्रदान किया गया होगा और उसी समय युवा मुनि नागार्जुन को युग-प्रधान पद । तत्पश्चात् वी. नि. ८४० के लगभग आर्य स्कन्दिल के स्वर्गवास होने पर ज्येष्ठ मुनि हिमवान को वाचनाचार्य बनाया गया होगा। जब आर्य हिमवन्त का स्वर्गवास हुआ तब अन्य वाचनाचार्य के अभाव में आर्य नागार्जुन को ही युग-प्रधान पद के साथ-साथ वाचनाचार्य का पद भी दे दिया गया होगा ।
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Elaboration - Arya Nagarjun— It is believed that Arya Nagarjun was the son of Kshatriya (the second caste in the traditional Hindu caste-hierarchy; the warrior or the regal caste) Sangram Simha of Dhank city. Since his childhood he was very brave
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