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आर्य धर्म-आर्य शाण्डिल्य के पश्चात् आर्य रेवतीमित्र और उनके पश्चात् आर्य धर्म के यग-प्रधानाचार्य बने। आपका जन्म वी. नि. ३९२ (७७ वि. पू., १३४ ई. पू.) में हुआ था। १२ 5 क वर्ष की आयु में दीक्षित होने के पश्चात् ४० वर्ष तक श्रमण-साधना के बाद वी. नि. ४५०
(१९ वि. पू., ७६ ई. पू.) में ये युग-प्रधानाचार्य बने और वी. नि. ४९४ (२५ वि., ३२ ई. पू.) प्र में स्वर्गवासी हुए।
आर्य भद्रगुप्त-आर्य धर्म के पश्चात् आर्य भद्रगुप्त युग-प्रधानाचार्य बने। आपका जन्म वी. नि. ४२२ (४७ वि. पू., १०४ ई. पू.) में, दीक्षा वी. नि. ४४९ (१७ वि. पू., ७४ ई. पू.) में ॐ हई। ४५ वर्ष की आयु में वी. नि. ४९४ में आपको युग-प्रधानाचार्य पद मिला और वी. नि.
५३३ (६४ वि., ७ ई.) में आपका स्वर्गवास हुआ। आप ज्योतिष विद्या के प्रकाण्ड विद्वान् थे। ॐ ख्यातनामा वज्रस्वामी के आप शिक्षा गुरु थे।
आर्य वज्रस्वामी-परम मेधावी तथा अन्तिम दश पूर्वधर आर्य वज्रस्वामी के विषय में मान्यता ॐ है कि उन्हें जन्म के पश्चात् जातिस्मरण ज्ञान प्राप्त हो गया था। यह अद्भुत महापुरुष संभवतः म जैन इतिहास में अकेला उदाहरण है जिसको ६ माह की आयु में माता ने भिक्षादान स्वरूप अपने
श्रमण पिता को ही दे दिया गया था। इनका लालन-पालन श्रमणियों के सान्निध्य में हुआ। जिसके
फलस्वरूप अल्पायु में ही इन्होंने अपार श्रुतज्ञान आत्मसात कर लिया था। अवन्ती के श्रेष्ठि धन ज के पौत्र तथा धनगिरि के पुत्र आर्य वज्र अल्पायु में ही अपने साथी श्रमणों को वाचना देने लगे है मथे। पूर्व ज्ञान की प्राप्ति हेतु इन्हें अपने दीक्षा गुरु आर्य सिंहगिरि द्वारा आर्य भद्रगुप्त के पास
भेजा गया। दश पूर्वो का ज्ञान धारण करने के पश्चात् वे आर्य सिंहगिरि के पास लौट आये। वी. नि. ५४८ (७९ वि., २२ ई.) में उन्हें आचार्य पद पर सुशोभित किया गया। आचार्य वज्र ने धर्म : प्रभावना हेतु विशाल क्षेत्र की यात्राएँ की तथा अपने गम्भीर ज्ञान व कठोर संयम से जनमानस को प्रेरित किया। वज्र स्वामी का स्वर्गगमन वी. नि. ५८४ (११५ वि., ५८ ई.) में दक्षिण भारत
में हुआ। चीनी यात्री ह्वेनसांग अपनी भारत यात्रा के समय इनसे मिला था और इनके ज्योतिष म ज्ञान से बहुत प्रभावित हुआ था। इस बात की चर्चा उसने अपने यात्रा प्रसंगों में की है। 1 Elaboration-In the opinion of commentators Jindasgani 45 4 Mahattar (Churnikar), Acharya Haribhadra Suri (Vrittikar) and 4 $i Malayagiri (Tikakar) verses 31 and 32 are interpolated. However, 45 Hi they are available in the ancient manuscripts and according to si
Acharya Shri Hastimal ji M., the Acharyas mentioned therein were great scholars of Agams and towering personalities of their respective times. For their special talents these Yuga-pradhanacharyas must
have been accepted as Vachanacharyas in spite of their not belonging 4 to the Vachak-lineage.
Arya Dharma-Arya Shandilya was succeeded by Arya 5 Revatimitra and then by Arya Dharma as Yuga-pradhanacharya. He $ was born in the year 392 A.N.M. (77 B.V., 134 B.C.). After getting 5
在听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听
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