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________________ ssss$听听听听听听F听听听听听听听听F AF乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 野野蹈節點點醫醫醫醫醫時期對另步步助步步紧 56 था किन्तु पट्टधर आर्य महागिरि ही थे। अपने गुरुभाई आर्य सुहस्ति तथा अन्य शिष्यों को श्रुतज्ञान ज दे विद्वान् बनाने के पश्चात् आर्य महागिरि विशेष साधनाओं में संलग्न हो गये किन्तु संघ के साथ ही विहार करते रहे। वे विशुद्ध आचार के सबल समर्थक व पोषक थे तथा इसमें किसी भी प्रकार है की शिथिलता दिखाई पड़ने पर आर्य सुहस्ति को टोकने में भी संकोच नहीं करते थे। इनका ॐ स्वर्गारोहण वी. नि. २४५ (२२४ वि. पू., २८१ ई. पू.) हुआ। ऐतिहासिक काल गणना के अनुसार + आर्य महागिरि का काल सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य तथा उनके पुत्र बिन्दुसार का राज्य काल था। 卐 आर्य सुहस्ती-वाशिष्ट गोत्रीय आर्य सुहस्ती का जन्म वी. नि. १९१ (२७८ वि. पू., ३३५ ॥ ई. पू.) में होने का अनुमान है। आर्य महागिरि के समान ही इनके माता-पिता का नामोल्लेख भी कहीं नहीं मिलता और इनकी शैशव अवस्था भी आर्या यक्षा की देखरेख में बीती थी। इनके दीक्षा समय के विषय में मतभेद है किन्तु अनुमानतः वह वी. नि. २१४-२१५ (२५५-२५४ वि. पू.,) में हुई होगी। अतः इन्होंने श्रुतज्ञान का अभ्यास आर्य स्थूलभद्र तथा आर्य महागिरि दोनों से ॐ प्राप्त किया होगा ऐसा प्रतीत होता है। आर्य महागिरि के साथ ही आचार्य पद दिये जाने के 卐 कारण तथा उनके विशिष्ट साधनाओं में संलग्न रहने के कारण ऐसा लगता है कि संघ व्यवस्था का कार्य आर्य सुहस्ती ही संचालित करते होंगे। वी. नि. २४५ (२२४ वि. पू.,) में आर्य महागिरि के देहावसान के बाद उनका स्वतन्त्र शासनकाल का आरम्भ हुआ। उन्हीं के शासनकाल 卐 में सम्राट् बिन्दुसार के परलोक गमन के पश्चात् सम्राट अशोक का शासनकाल आरम्भ हुआ। अशोक के दीर्घ शासनकाल के पश्चात् उनका पौत्र सम्प्रति सिंहासन पर आरूढ हुआ। आर्य ॐ सुहस्ती ने सम्प्रति को प्रतिबोध दिया। सम्राट् सम्प्रति की जैनधर्म के प्रति आस्था बहुत गहरी थी। उनका राज्यकाल जैनधर्म का स्वर्णकाल माना जाता है। सम्राट सम्प्रति ने अपने सम्पूर्ण अधिकार क्षेत्र में जैन धर्म का प्रचुर प्रचार-प्रसार करवाया। अपना ४६ वर्षीय आचार्य काल पूर्ण कर एक विशाल सुगठित शिष्य परिवार को छोड़ वी. नि. २९१ (१७८ वि. पू., २३५ ई. पू.) में आपने महाप्रयाण किया। o आचार्य सुहस्ती ने संगठनात्मक व्यवस्था के उद्देश्य से आचार्य पद के आवश्यक कर्त्तव्यों एवं * अधिकारों के तीन विभाजन किये-गणधरवंश, वाचकवंश तथा युग-प्रधान परम्परा। जैनधर्म-संघ 5 के इतिहास में यह एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। काल प्रभाव से उत्पन्न तथा संभावित परिवर्तनों को पहचान कर संघ के बिखरने की संभावनाओं के प्रतिकार के लिये यह पहली संगठनात्मक म परिकल्पना थी। F आचार्य बलिस्सह-कौशिक गोत्रीय आर्य बलिस्सह के विषय में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं 卐 है। ये आर्य महागिरि के शिष्य थे तथा उन्हीं के समान आचार-साधना पर विशेष निष्ठा रखते थे। आर्य महागिरि के देहावसान के पश्चात् ये उनके गण के प्रमुख गणाचार्य माने गये। 卐 आर्य सुहस्ती ने इन्हें श्रुतज्ञान के प्रौढ़ विद्वान् होने के कारण सम्पूर्ण संघ का वाचनाचार्य नियुक्त किया। इन्होंने आगम ज्ञान के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान किया तथा श्रुतज्ञान को 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听9 जश्री नन्दीसूत्र ( ३० ) Shri Nandisutra 中5场需先完%%%%%%%紧紧紧紧紧紧紧紧紧紧紧紧紧的 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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