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安牙牙牙斯牙牙劳斯等等等等等等等等等等555555%%%$ ॐ पद ग्रहण किया। उन्हें सभी अंग शास्त्रों का ज्ञान था। भगवान महावीर की परम्परा के वे प्रथम
श्रुतकेवली थे। इनका निर्वाण वी. नि. ७५ (३९४ वि. पू., ४५१ ई. पू. ) में लगभग १०५ वर्ष
की आयु में हुआ। a आर्य शय्यम्भव स्वामी-इनका जन्म राजगृह के एक वत्सगोत्रीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
ये वेदों के गहन ज्ञाता थे पर उतने ही अभिमानी भी। आर्य प्रभव स्वामी को जब अपने फ़ उत्तराधिकारी पद के उपयुक्त कोई विद्वान् शिष्य नहीं मिला तो उन्होंने श्रमणेतर विद्वानों की है
खोज की। एक बार यज्ञ करते समय आर्य शय्यम्भव भट्ट ने श्रमणों से सुना कि तत्त्व को कोई
नहीं जानता। इस पर वे यह निश्चित करने के लिए कि श्रमण-परम्परा के शीर्षस्थ आचार्य भी ॐ तत्त्व को जानते हैं या नहीं, आर्य प्रभव के पास आये। आर्य प्रभव ने उन्हें तत्त्व-बोध दिया और के
वे शिष्य बन गये। शय्यम्भव मेधावी तो थे ही, आर्य प्रभव ने उन्हें द्वादशांगी का सम्पूर्ण ज्ञाना
दिया और अपना उत्तराधिकारी बनाया। अट्ठाईस वर्षीय शय्यम्भव के गृहस्थ जीवन-त्याग के ॐ समय उनकी पत्नी गर्भवती थी। अतः पिता-पुत्र परस्पर अपरिचित ही थे। बढ़ती आयु के सा + पुत्र के मन में अपने पिता का स्नेह पाने की ललक भी बढ़ती गई। बालक मनक जब प्रथम बार
पिता से मिलने गया तो आर्य शय्यम्भव ने उसे अपना परिचय नहीं दिया अपितु उसकी अध्यात्म+ साधना के प्रति रुचि देखकर उसे प्रतिबोध दिया। बालक मनक आठ वर्ष की अवस्था में ही
दीक्षित हो गया। आर्य शय्यम्भव को ज्योतिष ज्ञान के आधार पर यह आभास हुआ कि वालक
अल्पायु है। यह जानकर उन्होंने अपने पूर्व ज्ञान के आधार पर दशवैकालिकसूत्र की रचना की। ॐ जैन-परम्परा में आज भी यह ग्रन्थ बहुत समादृत व प्रचलित है। तेईस वर्ष तक युग-प्रधान रहे + आर्य शय्यम्भव ने वी. नि. ९८ (३७१ वि. पू., ४२८ ई. पू.) में बासठ वर्ष की आयु में देह त्याग किया। आपके समय में मगध पर नन्दवंश का राज्य था।
Elaboration-After the founding of the religious ford by the Tirthankar the responsibility of the management of the religious 5 order and organization rests with his principal disciples, the 4 Ganadharas. The man who shoulders this responsibility after the 4
nirvana of the Tirthankar is known as Pattadhar (Head of the Order).
Nine of his chief disciples had attained omniscience and were # liberated before the nirvana of Bhagavan Mahavir. In Pavapuri,
Gautam Swami also became omniscient immediately after the E nirvana of Bhagavan Mahavir. An omniscient, as a rule, is never at 45 carrier of any tradition; as such, although alive, Gautam Swami did 45
not become the head of the order. The responsibility of carrying on the religious tradition established by Bhagavan Mahavir came to Sudharma Swami making him the first Head of the Order. This is the panegyric of the Acharyas belonging to the glorious lineage of heads of the order of Bhagavan Mahavir.
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ॐ श्री नन्दीसूत्र
( २० )
Shri Nandisutra 15 59555555555555550
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