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________________ ED $555555555555555555555555 56 अन्य सभी गणधरों की शिष्य-परम्परा का भार भी आर्य सुधर्मा ग्रहण कर चुके थे। बारह वर्ष तक पट्टधर रहने के पश्चात् उन्हें वी. नि. १२वें वर्ष (४५७ वि. पू., ५१४ ई. पू.) में 5 म केवलज्ञान प्राप्त हुआ। लगभग सौ वर्ष की आयु में आपका निर्वाण वी. नि. २० (४४९ वि. पू., ५०६ ई. पू.) में राजगृह के वैभारगिरि पर एक मास के अनशनपूर्वक हुआ। ____ आर्य जम्बू स्वामी-सुधर्मा स्वामी के पट्टधर शिष्य जम्बू स्वामी थे। भगवान महावीर के निर्वाण से सोलह वर्ष पूर्व (५४३ ई. पू.) राजगृह के एक समृद्ध वैश्य परिवार में इनका जन्म ॥ का हुआ था। इनके पिता सेठ ऋषभदत्त थे और माता थी धारिणी देवी। गर्भ धारण के समय माता धारिणी ने पाँच दिव्य स्वप्न देखे थे-(१) अनशनपूर्वक निर्धूम अग्नि, (२) कमल सरोवर, (३) के पके धान के खेत, (४) चार दाँतों से युक्त श्वेत गजराज, और (५) श्रेष्ठ जम्बू फल। यथासमय पुत्र-जन्म होने के पश्चात् उसका नाम जम्बूकुमार रखा गया। सोलह वर्ष की आयु में सुधर्मा स्वामी का प्रवचन सुन उन्हें वैराग्य उत्पन्न हो गया था। दीक्षा लेने हेतु जब माता-पिता से आज्ञा ॥ लेने गये तो उन्होंने अनेक प्रकार से जम्बू को समझाने की चेष्टा की पर वे अपने निश्चय पर अटल रहे। अन्ततः माता ने अनुनय किया कि "जम्बू, यदि उनकी एक अभिलाषा पूरी कर दें ॐ तो वे स्वयं भी जम्बूकुमार के साथ ही दीक्षा ले लेंगी।" जम्बू ने इस वचन के साथ आज्ञा मान ली कि अभिलाषा पूरी होने पर वे पुनः उनके मार्ग की बाधाएँ उत्पन्न नहीं करेंगी। ज माता-पिता ने अपनी अभिलाषा पूर्ण करने के लिए सुन्दर गुणवती कन्याओं से जम्बू का विवाह कर दिया। माता-पिता के आग्रह से उन्होंने विवाह तो कर लिया किन्तु उसी रात्रि अपनी ॐ आठों पलियों को इतना हृदयस्पर्शी धर्मोपदेश दिया कि आठों ही नवविवाहिताओं का मन संसार के से विरक्त हो गया। जम्बू के इस उपदेश को उनके यहाँ चोरी करने आया दस्यु प्रभव भी सुन - रहा था, उसे भी उपदेश सुनकर वैराग्य उत्पन्न हो गया। प्रातःकाल जम्बू ने प्रभव तथा उनके के साथियों सहित कुल ५२७ व्यक्तियों के साथ ४६९ वि. पू. में राजगृह में विराजित सुधर्मा स्वामी के पास दीक्षा ग्रहण कर ली। इस दीक्षा समारोह में मगधपति कूणिक भी अपनी विशाल ॐ राज-परिषद् के साथ उपस्थित था। बारह वर्ष तक उन्होंने सुधर्मा स्वामी के पास समस्त आगमों का तलस्पर्शी ज्ञान प्राप्त किया और उनके केवलज्ञान के पश्चात् सुधर्मा स्वामी के पट्ट पर आसीन हुए। वी. नि. २० (वि. पू. ४४९ या ४५०) में केवलज्ञान प्राप्त हुआ और वी. नि. ६४ (४०५ वि. पू., ४६२ ई. पू.) में उनका निर्वाण हुआ। जम्बू स्वामी इस अवसर्पिणी काल के अन्तिम केवलज्ञानी माने जाते हैं। ___आर्य प्रभव स्वामी-जम्बू स्वामी के पट्ट पर आये आर्य प्रभव स्वामी। आपकी दीक्षा भी आर्य सुधर्मा के पास हुई थी। यद्यपि ये विन्ध्यप्रदेश के एक राजा के ज्येष्ठ पुत्र थे, किन्तु पिता के ॐ द्वारा छोटे भाई को उत्तराधिकारी बना देने के कारण क्षुब्ध होकर दस्यु बन गये और पाँच सौ ॥ चोरों के अधिनायक भी। जम्बू कुमार के घर में चोरी करते समय उन्हीं के उपदेश से प्रभव का 5 ॐ हृदय परिवर्तन हुआ और जम्बूकुमार के साथ दीक्षा ले ली। वी. नि. ६४वें वर्ष में उन्होंने आचार्य युग-प्रधान स्थविर वन्दना ( १९ ) Obeisance of the Era-Leaders 4 $ 555555岁岁岁岁万岁万岁万万岁%%%%%%岁岁岁牙牙牙 听听听乐乐听听听听听听听听听听听听听听听F5听听听听听听听乐$$$$$$$$ $$乐乐乐 听听听听听听听听听$$ $$$$$$$$$$$$$$$$听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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