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號醫醫醫醫勞既野戰 野聯盟第劣等多岁身家5% * अर्थ-प्रश्न-यह सूत्र कितने प्रकार का है?
उत्तर-सूत्र २२ प्रकार के बताये हैं-(१) ऋजुसूत्र, (२) परिणतापरिणत, (३) वहुभंगिक, (४) विजयचरित, (५) अनन्तर, (६) परम्पर, (७) आसान, (८) संयूथ,
(९) सम्भिन्न, (१०) यथावाद, (११) स्वस्तिकावर्त, (१२) नन्दावर्त, (१३) बहुल, ॐ (१४) पृष्टापृष्ट, (१५) व्यावर्त, (१६) एवंभूत, (१७) द्विकावर्त, (१२) वर्तमानपद, (१९) समभिरूढ़, (२०) सर्वतोभद्र, (२१) प्रशिष्य, तथा (२२) दुष्प्रतिग्रह।
छिन्नच्छेद नय वाले ये २२ सूत्र स्व-पक्ष की सत्र परिपाटी के अनुसार हैं। ये ही २२. - सूत्र आजीवक गोशालक के दर्शन की सूत्र परिपाटी के अनुसार अछिन्नच्छेद नय वाले हैं। ॐ ये ही २२ सूत्र त्रैराशिक सूत्र परिपाटी के अनुसार तीन नय वाले हैं। और ये ही २२ सूत्र है
स्व-पक्ष की सूत्र परिपाटी के अनुसार चतुष्क-चार नय वाले हैं। इस प्रकार पूर्वापर सब मिलाकर अट्ठासी सूत्र होते हैं ऐसा कहा गया है। यह सूत्र का वर्णन है। ____ 105. Question-What is this Sutra?
Answer-Sutra is said to be of twenty two types1. Rijusutra, 2. Parinataparinat, 3. Bahubhangik, 5 4. Vijayacharit, 5. Anantar, 6. Parampar, 7. Asan, 8. Samyuth, 4 9. Sambhinna, 10. Yathavad, 11. Svastikavart, 12. Nandavart, 41 卐 13. Bahul, 14. Prishtaprishta, 15. Vyavart, 16. Evambhoot,
17. Dvikavart, 18. • Vartamanapad, 19. Samabhiroodh, 20. Sarvatobhadra, 21. Prashishya, and 22. Dushpratigraha.
These twenty two sutras are of Chhinnachheda naya according to the Jain tradition. The same twenty two sutras are 4 of Achhinnachheda naya according to the school of Ajivak 41 4 Goshalak. And once again the same twenty two sutras are of
three nayas according to the Trairashik tradition. These same 22 Sutras are also of four nayas according to the Jain tradition. Thus it is said that including all, the total number of sutras is 88.
This concludes the description of Sutra
विवेचन-छिन्नच्छेद नय उसे कहते हैं जहाँ दो पद अर्थ के लिए एक-दूसरे की अपेक्षा नहीं है रखते, उनका अर्थ स्वतन्त्र होता है। जैसे-धम्मो मंगलमुक्किट्ठ (धर्म सर्वोत्कृष्ट मंगल है) यह पद 卐 किसी अन्य पद पर निर्भर नहीं करता-इसका अर्थ स्वतंत्र है। धम्मो मंगलमुक्किट्ठ-अहिंसा संजमो के
तवो (वह धर्म सर्वोत्कृष्ट मंगल है जिसमें अहिंसा, संयम और तप है) यहाँ दोनों पद अर्थ के लिए एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं-अतः यह अच्छिन्नच्छेद नय है। श्री नन्दीसूत्र
Shri Nondisutra
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