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5 descriptions of limited number of mobile beings, and infinite i immobile beings. Established with the help of shashvat (eternal i __or fundamental), krit (created or experimented) and natural ___evidences, the tenets of the Jina have been stated (akhyayit),卐 ___ propagated (prajnapit), detailed (prarupit), explained (with the ___help of metaphors) (darshit), clarified (with the help of
examples) (nidarshit), and simplified (with the help of discourse style) (upadarshit).
It has been presented in such charan-karan style that if a person is engrossed in its studies, he becomes a scholar and an expert of the subject. This concludes the description of Vipak Shrut.
(१२) दृष्टिवाद श्रूत परिचय
12. DRISHTIVAD SHRUT ९६ : से किं तं दिडिवाए ?
दिडिवाए णं सव्वभावपरूवणा आघविज्जइ से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा(१) परिकम्मे, (२) सुत्ताइं, (३) पुव्वगए, (४) अणुओगे, (५) चूलिआ।
अर्थ-प्रश्न-इस दृष्टिवाद में क्या है ?
उत्तर-दृष्टिवाद में सर्व-भाव प्ररूपणा उल्लिखित है। यह संक्षेप में पाँच प्रकार की है(१) परिकर्म, (२) सूत्र, (३) पूर्वगत, (४) अनुयोग, और (५) चूलिका।
96. Question-What is this Drishtivad? ___Answer-In Drishtivad there is validation of subjects forms
all modes (angles). In brief it is of five types-(1) Parikarma, (2) Sutra, (3) Purvagat, (4) Anuyog, and (5) Chulika.
विवेचन-मूल प्राकृत शब्द दिट्टिवाय की संस्कृत छाया होती है, दृष्टिवाद अथवा दृष्टिपात। म यहाँ दोनों अर्थ ही संगत वैठते हैं। दृष्टि शब्द अपने आप में अनेकार्थक है-नेत्रों की शक्ति, ज्ञान
शक्ति, समझ, अभिमत, दर्शन, नय (अर्थ ग्रहण करने के विभिन्न दृष्टिकोण)। पात का अर्थ है। डालना तथा वाद का अर्थ है कहना या अभिव्यक्त करना अथवा मत विशेष। अतः यह मूलतः दर्शन विषयक विश्वकोश है।
विश्व में जितने भी दर्शन हैं, ज्ञान का जितना भी भण्डार है, नयों की जितनी भी संभावित प्रणालियाँ हैं, उन सभी का समावेश दृष्टिवाद में हो जाता है। यह विशाल विश्वज्ञान कोषक अध्ययन क्रम से पाँच भागों में संकलित किया गया है।
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श्री नन्दीसूत्र
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( ४३२ )
Shri Nandisutra 54555555550
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