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| ४. चित्र परिचय
Illustration No. 4
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संघ सुमेरु यह संघरूपी सुमेरु चारित्ररूपी स्वर्णगिरि के समान दीप्तिमान है। इसकी भूपीठिका (तलहटी) सम्यग्दर्शनरूप वज्ररत्नों से निर्मित है। इसकी मूलगुण रूप स्वर्ण मेखला है। संयमरूप स्वर्ण जैसे शिलातल है। उस पर सन्तोषरूपी नन्दनवन है।
इस संघरूपी मेरुगिरि की कन्दराओं (गुफाओं) में कुबुद्धि कुतों का नाश करने वाले संयमी श्रमणरूपी सिंह विचर रहे हैं। इस मेरुगिरि के दोनों ओर संवररूपी स्वच्छ जल के झरने झर रहे हैं। श्रावकजनरूपी मयूर मस्ती में झूम रहे हैं। इस पर्वत पर विनय, संयम, तप आदि गुणों से युक्त मुनिजनरूपी कल्पवृक्ष हैं। इस प्रकार का संघरूपी सुमेरु सदा जयवंत हो॥१४-१६॥
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THE SANGH SUMERU This sangh-sumeru has a golden glow like the golden peak that is right conduct. Its base is made up of diamonds of right perception. It has a golden girdle of basic virtues. It has golden outcrop of rocks of discipline where there are jungles of contentment.
In its caves dwell the lion-like disciplined ascetics who destroy the baseless logic of antagonists. On its two sides flow pure streams of samvar. Pea-cock like shravaks dance here in ecstasy. It is resplendent with the wishfulfilling trees that are the ascetics having virtues like
modesty, discipline and austerity. May this sanghmountain bring victory to all. (14-16)
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