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________________ 如听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 $$$$$% 所需资助等等等场与场站场与5岁男助听听当场身 (२) निःकांक्षित-सच्चे देव, गुरु, धर्म और शास्त्र को छोड किसी अन्य कुदेव, कुगुरु, शास्त्राभास और धर्माभास की आकांक्षा नहीं करना। (३) निर्विचिकित्सा-“मैं जो आचरण करता हूँ उस धर्म का फल मिलेगा या नहीं?'' फल के प्रति इस प्रकार किंचित् मात्र सन्देह न करना। अमूढदृष्टि-विभिन्न दर्शनों की तर्क व युक्तियों से, मिथ्यादृष्टि की ऋद्धि आडम्बर, चमत्कार, विद्वत्ता, भय, अथवा प्रलोभन से भ्रमित हो उनकी ओर आकर्षित न होना। स्त्री, पुत्र, धन आदि के प्रति आसक्त हो मूढ़ न बनना। (५) उवबृंहण-जो संघ सेवा करते हैं, साहित्यसेवी हैं, तप-संयम की आराधना करते हैं, जिनकी प्रवृत्ति जनसेवा, जीव-सेवा तथा धर्म-क्रिया में बढ़ रही है उनका उत्साह बढ़ाना तथा उस ओर प्रयत्न करना। (६) स्थिरीकरण-धर्म से गिरते हुए सहधर्मी व्यक्तियों को धर्म में स्थिर करना। (७) वात्सल्य-सहधर्मी जनों पर वात्सल्य भाव रखना, उन्हें देखकर प्रसन्न होना और उनका आदर-सम्मान करना। प्रभावना-जिन क्रियाओं में धर्म-शासन की उन्नति हो तथा जन सामान्य धर्म से । प्रभावित हो उन क्रियाओं में संलग्न होना और जिन क्रियाओं से धर्म की हीनता तथा निन्दा हो वे न करना। (III) चारित्राचार-जिससे संचित कर्म या कर्मों की सत्ता का क्षय हो उसे चारित्र कहते हैं। अणुव्रत देश-चारित्र हैं तथा महाव्रत सार्वभौम-चारित्र। चारित्राचार से आत्मा ऊर्ध्वगामी होती है। " चारित्राचार दो भागों में विभाजित है-(अ) प्रवृत्ति और (ब) निवृत्ति। मोक्षाभिमुख प्रशस्त प्रवृत्ति को समिति कहते हैं और निकृष्ट वर्जित आचार से निवृत्ति को गुप्ति। (अ) समिति पाँच प्रकार की है(१) ईर्या समिति-षटकायिक जीवों की रक्षा करते हुए यत्न सहित गमनागमन। (२) भाषा समिति-सत्य एवं मर्यादा की रक्षा करते हुए यत्नपूर्वक बोलना। (३) एषणा समिति-अहिंसा (जीवदया), अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की रक्षा करते हुए यतना से आजीविका करना या निर्दोष भिक्षा ग्रहण करना। आदान भण्डमात्र निक्षेप समिति-उठाने रखने वाली वस्तु को अहिंसा (जीवदया), अपरिग्रह व्रत की रक्षा करते हुए यतना से उठाना-रखना। (५) उच्चार-प्रस्रवण-श्लेष्मजल्ल-मल निक्षेप समिति-मल-मूत्र, श्लेष्म, थूक आदि जो शरीर के उत्सर्जन हों, अनावश्यक हों, रोगवर्द्धक हों, फैंकने योग्य हों, उन्हें 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 ॐ श्री नन्दीसूत्र $$ $$$% (३८० ) Shri Nandisutra 4 %%%%步步步步功%%%%%%% %%%% %% Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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