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________________ )))))))))) 555555555555555岁万岁万岁万岁万岁万岁万岁万岁万岁万中 of asanjni shrut is called asanjni (non-sentient) (sentient) being. 4 The knowledge of these is called sanjni shrut or asanjni shrut respectively with reference to drishtivad upadesh. This concludes the description of sanjni and asanjni shrut. विवेचन-संज्ञी तथा असंज्ञी प्राणी के तीन विकल्प है। तीनों विकल्पों से संबंधित श्रुत ही + संज्ञीश्रुत तथा असंज्ञीश्रुत कहलाता है। ये तीन विकल्प इस प्रकार हैं (१) कालिकी उपदेश (दीर्घकालिकी उपदेश)-कालिकी अथवा दीर्घकालिकी दृष्टिकोण से म संज्ञी प्राणी वह है जो सूचना अथवा ज्ञान के अवग्रहण अथवा सम्पर्क के पश्चात क्रमबद्ध रूप में ईहा, अपोह, मार्गणा, गवेषणा, चिन्ता तथा विमर्श क्रियाओं के द्वारा ही उस ज्ञान को आत्मसात् । करता है। संक्षेप में जिस प्राणी में इस प्रकार किसी वस्तु या विषय को ग्रहण करने की शक्ति है + वह संज्ञी प्राणी होता है। इस श्रेणी में मनःपर्याप्ति सम्पन्न गर्भज, औपपातिक तथा नारकी आते हैं। इनका श्रुत संज्ञीश्रुत होता है। म जिन प्राणियों में यह शक्ति नहीं होती वे असंज्ञी कहे जाते हैं। इस श्रेणी में सम्मूछिमक पंचेन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, त्रीन्द्रिय तथा द्वीन्द्रिय जीव आते हैं। मनःपर्याप्ति से सम्पन्न जीवों में मनोलब्धि यथेष्ट होती है अतः वे सूचना अथवा ज्ञान को स्पष्ट रूप में ग्रहण करते हैं। जैसे-जैसे ॐ स्तर गिरता है वैसे-वैसे मनोलब्धि अल्प होती जाती है और अर्थ ग्रहण भी तदनुरूप अस्पष्ट के होता जाता है। निम्नतम स्तर पर एकेन्द्रिय जीव होते हैं जिन्हें अस्पष्टतम अर्थ की प्राप्ति होती है। इनका श्रुत असंज्ञीश्रुत होता है। (२) हेतु उपदेश-हेतु उपदेश दृष्टिकोण से संज्ञी प्राणी वह है जो हेतु समझकर उसके । अनुसार क्रिया में प्रवृत्त अथवा निवृत्त होता है। यह इष्ट से संयोग करता है और अनिष्ट से 卐 वियोग। इसके उदाहरण हैं मक्खी, मच्छर आदि प्राणी जो दिन या रात में, धूप या छाया में, आहार के मिलने न मिलने पर, सुख या कष्ट होने न होने पर आवागमन करते हैं। उक्त अपेक्षा से ये सभी संज्ञी जीव की श्रेणी में आते हैं। इनका श्रुत संज्ञीश्रुत होता है। जिन जीवों की इष्ट-अनिष्ट के हेतु से प्रवृत्ति-निवृत्ति नहीं होती वे सभी असंज्ञी जीव होते E हैं। इस श्रेणी में वनस्पति आदि पाँच स्थावर जीव आते हैं। इनका श्रुत असंज्ञीश्रुत होता है। (३) दृष्टिवादोपदेश-दृष्टि का अर्थ है दर्शन। जिस जीव में सम्यक्दृष्टि अथवा सम्यक् दर्शन ॐ हो वह संज्ञी होता है। अन्य शब्दों में जो क्षयोपशम ज्ञान से युक्त है अथवा जो आत्मा सम्बन्धी 卐 हित अहित को यथार्थ रूप से जानता समझता है वह संज्ञी होता है। ऐसा संज्ञी जीव ही आत्मा के के लिए अहितकर राग-द्वेषादि भावों से विरत होने का प्रयत्न कर मोक्ष रूपी श्रेय की प्राप्ति की ॐ ओर बढ़ता है। जो आत्मा सम्बन्धी हित अहित को यथार्थ रूप में नहीं जानता समझता वह असंज्ञी होता है। ॐ ऐसा असंज्ञी जीव मिथ्यादृष्टि होता है तथा आत्मा के लिए अहितकर भावों को ही हितकर समझ 6听听听听听听听听听听FFFFFFF5FFFFFFF%%%听听听听听听听听听听听听$ $$$$$ )))))))))))))))))))) 卐 श्रुतज्ञान (३४७) Shrut-Jnana 15 岁岁岁男玩%与5岁乐乐与乐555岁男岁岁岁岁岁岁岁岁岁岁身与牙牙 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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