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से किं तं पडिबोहगदिट्टतेणं?
पडिबोहगदिट्टतेणं, से जहानामए केइ पुरिसे कंचि पुरिसं सुत्तं पडिबोहिज्जा'अमुगा ! अमुगत्ति !!' ___तत्थ चोयगे पन्नवगं एवं वयासी-किं एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? दुसमय-पविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? जाव दससमय-पविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? संखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छति? असंखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गलाई गहणमागच्छति?
एवं वदंतं चोयग-पण्णवए एवं वयासी-नो एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, नो दुसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, जाव नो दससमयपविठ्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति नो संखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? असंखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति,
से तं पडिबोहगदिढतेणं।
सूत्र-अर्थ-उपरोक्त अट्ठाइस प्रकार के आभिनिबोधिक-मतिज्ञान के व्यंजनावग्रह आदि की प्रतिबोधक तथा मल्लक के उदाहरणों से प्ररूपणा करूँगा। (पूर्वोक्त चार प्रकार का व्यंजनावग्रह, छह प्रकार का अर्थावग्रह, छह प्रकार की ईहा, छह प्रकार का अवाय और छह प्रकार की धारणा)
प्रश्न-प्रतिबोधक के उदाहरण से व्यंजनावग्रह का स्वरूप किस प्रकार है?
उत्तर-प्रतिबोधक का दृष्टान्त इस प्रकार है-जैसे किसी नाम के किसी सोए हुए व्यक्ति ॐ को कोई इस प्रकार पुकारे-“हे अमुक ! हे अमुक !"
शिष्य ने गुरु से पूछा-"तब क्या उसके कानों में एक समय में प्रवेश पाए पुद्गल है। ग्रहण किए जाते हैं, दो समय के, यावत् दस समय के या संख्यात अथवा असंख्यात समयम में प्रवेश पाए पुद्गल ग्रहण किए जाते हैं ?"
तब गुरु ने शिष्य को समाधान दिया-“एक समय में प्रविष्ट हुए पुद्गल ग्रहण नहीं किए जाते, न दो समय के यावत् दस समय के और न संख्यात समय में प्रविष्ट हुए। पुद्गल ग्रहण होते हैं, केवल असंख्यात समयों में प्रविष्ट हुए पुद्गल ही ग्रहण किए जाते है हैं। यह प्रतिबोधक के दृष्टान्त से व्यंजनावग्रह के स्वरूप का वर्णन हुआ। (देखें चित्र २१)
62. I will establish the said twenty eight divisions of 5 . abhinibodhik mati-jnana (four vyanjanavagrah, six arthavagrah, . ॥ श्रुतनिश्रित मतिज्ञान
( ३२१ )
Shrutnishrit Mati-Jnanam 55555555555550
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