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________________ C3FF乐听听听听听听听F玩乐乐宝听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 S听听听听 MLEELEASESSESSES9554550 को खोज लिया। मागधिका के आने पर राजा ने उसे सारी योजना बताई और वह तत्काल म राजाज्ञानुसार कूलबालक मुनि की खोज में निकल गई। कूलबालक एक अतीव क्रोधी प्रकृति का और दुष्ट-बुद्धि श्रमण था। जब वह अपने गुरु के के साथ रहता था तो उनके कहे वचनों का गलत अर्थ लगाकर उन पर क्रोध करता रहता था। एक बार वह अपने गुरु के साथ किसी पहाड़ी मार्ग पर चल रहा था कि किसी बात पर क्रोध आते के ही उसने गुरुजी को मारने के लिए एक भारी-भरकम चट्टान पीछे से उनकी ओर लुढ़का दी। म अपनी ओर पत्थर आते देख गुरु उससे बचने के लिए मार्ग से हट गए। शिष्य के ऐसे घृणित कार्य पर वे कुपित हो गए और शाप दिया-"दुष्ट ! तू कितना नीच है, किसी को मार डालने ॐ जैसा कार्य भी तू कर सकता है। जा ! तेरा पतन किसी स्त्री के कारण होगा।" गुरु के वचनों के विरुद्ध चलना और उन्हें झूठा सिद्ध करने का प्रयत्न करना तो कूलबालक का जैसा स्वभाव ही था। गुरु की इस बात को भी झूठा सिद्ध करने के लिए वह एक निर्जन के प्रदेश में चला गया। वहीं एक नदी के किनारे ध्यानस्थ हो वह तपस्या करने में जुट गया। आहार * के लिए भी कभी गाँव में नहीं जाता। संयोगवश कभी कोई यात्री उस ओर निकल आता तो उसी + से कुछ आहार प्राप्त कर अपना जीवन निर्वाह कर लेता था। एक बार नदी में जोर से बाढ़ + आई। कूलबालक को उसमें बह जाने का भय लगा, किन्तु उसकी उग्र तपस्या का प्रभाव ऐसा हुआ कि नदी का वहाव दूसरी ओर स्वतः मुड़ गया। इसी आश्चर्यजनक घटना के कारण लोग फ़ उसे कूलबालक नाम से पुकारने लगे। मागधिका वेश्या ने पहले तो कूलबालक के स्थान का पता लगाया और तब वह एक ढोंगी श्राविका का रूप धरकर उसी नदी के निकट रहने लगी। अपनी सेवा-भक्ति के द्वारा उसने कूलबालक को प्रभावित किया और आहार लेने का आग्रह किया। जब वह साधु भिक्षा लेने के मागधिका के स्थान पर गया तो उसने आहार में विरेचक औषधि मिला दी। साधु को अतिसार 卐 की व्याधि लग गई। बीमारी की हालत में वेश्या उसकी सेवा-सुश्रूषा करने लगी। वेश्या के 5 निरन्तर स्पर्श से साधु का मन विचलित हो गया। साधु की यह मनःस्थिति अपने अनुकूल जानकर वेश्या उसे राजा कूणिक के पास ले गई। कूणिक ने कूलबालक मुनि को प्रसन्न करके पूछा-“विशाला नगरी का यह दृढ़ और विशाल परकोटा कैसे तोड़ा जा सकता है इसका उपाय बताइए?" कूलबालक मुनि ने कुछ सोचकर उत्तर दिया-"महाराज ! मैं नैमित्तिक का वेश धरकर नगर ॐ में प्रवेश करूँगा। उचित अवसर पर मैं परकोटे पर से सफेद वस्त्र हिलाकर संकेत दूंगा। जैसे ही आपको संकेत मिले आप अपनी सेना लेकर कुछ दूर पीछे की ओर हट जाइयेगा। जिससे लोगों को मेरी बात का विश्वास हो जायेगा।" कूणिक के हाँ कहने पर वह नैमित्तिक का वेश धरकर सरलता से विशाला नगरी में प्रवेश # कर गया। एक नैमित्तिक को आया देख नगर के प्रतिष्ठित व्यक्ति उसके पास आए और पूछा $听听听听听听听听 $$$$$$$$$$听听听$$$$ $$ $$$$听听听听听听听听听听听听听听听 म मतिज्ञान (पारिणामिकी बुद्धि) 步助步步步步步岁岁岁岁%% ( २९९ ) %%% %% Mati-jnana (Parinamiki Buddhi)卐 % %%%%%%%$ $ $ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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