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१. चित्र परिचय
अर्हत् स्तुति
जय जग जीव जोणी-वियाणओ जगगुरु जगाणंदो । जगणाही जगबंधू जयइ जगप्पियामहो भयवं ॥ १ ॥
विकसित हो रहे हैं।
जगत् के सभी जीवों की योनि अर्थात् उत्पत्ति-स्थान जैसे- पृथ्वीकाय, अप्काय,
तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पति, देव, मानव, तिर्यंच और नारक; इन सबके जन्म-मरण आदि भावों को जानने वाले अरिहंत भगवान को इन्द्र, देव, मानव आदि सभी वन्दना करते हैं।
Illustration No. 1
वे अरिहंत भगवान जगत् के नाथ हैं। जिस प्रकार सूर्योदय होने पर सरोवर में कमल खिल जाते हैं वैसे ही अरिहंतरूपी सूर्य का दर्शन करके देव - मानव-तिर्यंचों के हृदय-कमल
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जयइ सुयाणं पभवो - अरिहंत भगवान के प्रवचनरूपी हिमालय से श्रुतज्ञानरूपी गंगा-सिंधु का महाप्रवाह प्रवाहित हुआ है जो द्वादशांगी रूप श्रुतसागर बन गया है। वे भगवान जयवंत हों ।
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ARHAT STUTI-THE PANEGYRIC OF THE ARHAT
Indra, gods, human beings, all pay homage to Arihant Bhagavan
who knows the genus into which beings are born or the places of
Who also knows all their modes including life and death.
origin of beings, like earth-bodied, water-bodied, fire-bodied, air-5
bodied, plant-bodied, gods, human beings, animals and hell beings.
That Arihant Bhagavan is the naath (lord, protector) of the world.
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when they behold the sun like Arihant.
Lotuses bloom in the pond with the dawning of the sun, in the same
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way the lotus-like hearts of gods, animals and human beings bloom
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The Ganges-Indus-like flow of scriptural knowledge springs forth from the Himalaya-like discourse of Arihant Bhagavan and turns into
the ocean-like twelve Angas (and explanatory literature). May that Bhagavan be ever victorious.
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