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दबाव देने पर जल में रहा छोर ऊपर उठकर जल की सतह पर आ जाये। जल-मग्न छोर पर
उसने स्वर्ण-मुद्राओं से भरी एक थैली रख दी और दूसरे छोर पर स्वयं बैठकर गंगा-स्तुति करने जलगा। स्तुति पूर्ण होने पर उसने झुककर गंगा को प्रणाम करने के बहाने तख्ते को दबाया।
तत्काल तख्ते का जल-मग्न छोर स्वर्ण-मुद्राओं के थैले सहित ऊपर उछल गया। आस-पास खड़े ॐ लोगों ने आश्चर्य से देखा तो वररुचि बोला-“महाराज मुझे पुरस्कृत नहीं करते तो क्या हुआ, + है माँ गंगा तो पुरस्कृत करती हैं।''
सारे नगर में यह बात फैल गई। जब राजा ने यह अद्भुत समाचार सुना तो उसने शकटार को बुलाकर पूछा। शकटार ने कहा-"किंवदन्ती पर विश्वास करने से पूर्व अपनी ऑखों से देख म लेना चाहिए। आपकी आज्ञा हो तो प्रातःकाल हम स्वयं यह चमत्कार देखें।"
राजा को यह सुझाव दे शकटार अपने निवास को लौटा और एक गुप्तचर को बुलाकर कहा है कि रात को नदी के किनारे छुपकर बैठ जावे। वररुचि मुद्राओं की थैली नदी में रखने आएगा।
जब वह थैली रखकर लौट जावे तब चुपके से नदी में जा वहाँ से थैली उठा लावे। सेवक ने देर रात गए वररुचि की थैली लाकर शकटार को दे दी।
प्रातःकाल नित्य की भाँति वररुचि ने गंगा-स्तुति की ओर झुककर तख्ते को दबाया। तख्ता ऊपर तो उठ गया पर उस पर रखी थैली नहीं थी। वररुचि आश्चर्य से इधर-उधर देखने लगा। + तभी राजा के साथ खड़े शकटार ने कटाक्ष करते हुए कहा-"पंडितवर ! रात को गंगा में छुपाई
आपकी थैली तो मेरे पास आ गई।" 5 राजा तथा उपस्थित जनसमूह के समक्ष अपनी पोल खुल जाने से वररुचि बहुत लज्जित
हुआ। सिर झुकाए वह वहाँ से चला गया किन्तु शकटार के प्रति उसका क्रोध और द्वेष भी बढ़ ॐ गया। उसने शकटार का नाश करने की ठान ली। कुछ दिनों बाद उसने अपने शिष्यों को एक ॐ श्लोक याद कराया और घूम-घूमकर सारे नगर में प्रचार करने लगा
"तं न विजाणेइ लोओ, जं सकडालो करिस्सइ।
नन्दराउं मारेवि करि, सिरियउं रज्जे ठवेस्सइ॥" (लोग यह नहीं जानते कि शकटार क्या करेगा? वह नन्द राजा को मारकर अपने पुत्र * श्रीयक को राज-सिंहासन पर स्थापित करेगा।)
वररुचि के शिष्यों ने इतना प्रचार किया कि जनता ही नहीं राजा नन्द को भी यह विश्वास ओ हो गया कि शकटार यह षड्यंत्र रच रहा है। एक दिन जब शकटार के अभिवादन करने पर 卐 राजा ने कुपित भाव से मुँह फेर लिया तो शकटार समझ गया कि राजा के मन में संदेह घर
कर चुका है। के शकटार चिन्तन करता अपने घर लौटा और पुत्र श्रीयक को पास बुलाकर कहा-“पुत्र!
राजा नन्द वररुचि द्वारा फैलाई भ्रान्ति के जाल में फँस गया है और उसका क्रोध मुझे ही नहीं, मतिझान (पारिणामिकी बुद्धि)
( २७१ ) Mati.jnana (Parinamihi Buddhi) 05555555555555555555555550
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