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________________ €55555555555555555555555 695 55555555550 5555555555550 एक अमात्य था जो बहुत योग्य, बुद्धिमान व राजभक्त था । कुमार ब्रह्मदत्त की देख-रेख व शिक्षा आदि के सभी प्रबन्ध वही करता था। जब कुमार युवक हुआ तो अमात्य धनु ने सावधानी से रानी चूलनी व दीर्घपृष्ठ के अनुचित सम्बन्धों के विषय में बताया और राज्य पर भविष्य में आने वाले खतरे का संकेत दिया। ब्रह्मदत्त क्रोध से तमतमा गया किन्तु अमात्य ने उसे क्रोध नहीं, चतुराई से काम लेने को कहा । bish' ब्रह्मदत्त ने अमात्य से मंत्रणा कर पहले तो अपनी माता को चेतावनी देने का निश्चय किया। एक दिन वह एक कोयल तथा एक कौआ को एक ही पिंजड़े में डाल अपनी माता के पास ले गया और क्रोध भरे स्वर में बोला - " इन पक्षियों के समान जो भी वर्ण संकरत्व का दोषी होगा मैं दण्डित करूँगा।" उन्हें रानी यह बात सुनकर आशंकित हो गई और दीर्घपृष्ठ से सब कुछ बता दिया । दीर्घपृष्ठ ने उसे यह कहकर आश्वस्त कर दिया कि बालक की बात पर ध्यान देना ठीक नहीं। कुछ दिनों बाद एक उत्तम हथिनी तथा एक विद्रुप हाथी को साथ देखकर ब्रह्मदत्त ने अपनी माता चूलनी रानी और दीर्घपृष्ठ दोनों को दिखाते हुए कटाक्ष किया - " ऐसे बेमेल के अनुचित सम्बन्ध करने वाले को मृत्युदण्ड दिया जायेगा ।" एक बार फिर उसने इस प्रकार की धमकी एक बगुले और हंसिनी को दिखाकर दी । तीसरी धमकी सुनकर दीर्घपृष्ठ भी आशंकित हो उठा। उसने और रानी चूलनी ने अपने वासना व्यापार को निष्कंटक करने के लिए एक षड्यन्त्र रचा। उन्होंने योजना बनाई कि गुप्त रूप से एक सुन्दर लाक्षागृह बनावे तथा ब्रह्मदत्त का विवाह कर उसे सपत्नीक उसे लाक्षागृह में रहने भेज देवे । सुहागरात के दिन ही उस लाक्षागृह में आग लगवाकर ब्रह्मदत्त को सपत्नीक जला दिया जाये। कामांध रानी भी पुत्र - हत्या के लिए तैयार हो गई । अमात्य धनु को अपने गुप्तचरों से इस योजना का पता चल गया । वह दीर्घपृष्ठ के पास गया और बोला - "देव ! मैं वृद्ध हो चला हूँ । अब राजकाज मेरे वश का नहीं। मैं अपना शेष जीवन भगवद्-भजन तथा दान-पुण्य कर बिताना चाहता हूँ। मुझे अवकाश देने की कृपा करें।" इस प्रकार आज्ञा ले वह नगर के बाहर गंगा तट पर एक विशाल डेरा बनाकर भजन कीर्तन करने लगा और वहीं दानशाला खुलवा दी। इसी स्थान से उसने गुप्त रूप से एक सुरंग खुदवाना चालू कर दी जो बन रहे लाक्षागृह के नीचे खुलनी थी। कुछ दिनों में जब लाक्षागृह बनकर तैयार हुआ तब तक धनु की सुरंग भी बनकर तैयार हो गई। दीर्घपृष्ठ तथा चूलनी ने ब्रह्मदत्त का विवाह राजा पुष्पचूल की कन्या से कर दिया। नव-दम्पति को सभी सहायता उपलब्ध कराने का दायित्व महामंत्री धनुं ने पुत्र वरधनु को, जो अब अमात्य था, को सौंप दिया। वरधनु और ब्रह्मदत्त बालसखा भी थे। सुहागरात के लिए नवदम्पत्ति को वरधनु ने लाक्षागृह में ले जाकर ठहरा दिया। अर्ध रात्रि के समय दीर्घपृष्ठ के गुप्तचरों ने लाक्षागृह में आग लगा दी । ब्रह्मदत्त ने अपने नये महल की दीवारों को पिघलते देखा मतिज्ञान ( पारिणामिकी बुद्धि) Mati-jnana' (Parinamiki Buddhi) ( २५९ ) 9555555555555 Jain Education International For Private. Personal Use Only 9555555 www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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