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________________ 9555555555555555******** ॐ ॐ ॐ h hom (७) धनदत्त - श्रेष्ठि धनदत्त की कथा के लिए देखें - सचित्र ज्ञाता धर्मकथांगसूत्र भाग २, अठारहवाँ अध्ययन । (८) श्रावक - एक व्यक्ति ने अन्तर में धर्म प्रेरणा जगने पर श्रावक के बारह व्रत ग्रहण किये जिनमें स्वदार - संतोष व्रत भी एक था। अनेक वर्षों तक वह इन नियमों पर स्थिर रहा किन्तु संयोगवश एक बार अपनी पत्नी की एक सखी को देखकर वह उसकी सुन्दरता पर आसक्त हो गया। उसे प्राप्त करने की इच्छा बलवती होती गई और सहज लज्जा के कारण वह उसे बता भी नहीं सका। मन ही मन दुःखी रहने के कारण उसका स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया। उसकी चिन्तित पत्नी ने एक दिन बहुत आग्रह कर उसके मन की व्यथा जान ली। श्राविका बहुत बुद्धिमान व धैर्यवान थी । उसने शान्तिपूर्वक विचार किया - " यदि मेरे पति के मन में ये कलुषित विचार बने रहे तो दुर्बलतावश एक दिन वह प्राण त्याग देगा और ऐसे विचारों के फलस्वरूप उसे दुर्गति प्राप्त होगी । अतः कोई ऐसा उपाय करना चाहिए कि यह अपने कुत्सित विचारों का त्याग कर पुनः सन्मार्ग पर स्थित हो जाये ।" यह विचार कर उसने एक योजना बनाई और अपने पति से कहा - " स्वामी, मैंने अपनी सखी से बात की है। वह आज रात्रि आपके पास आयेगी । किन्तु वह कुलीन है, उजाले में आते लज्जा का अनुभव करती है। अतः वह अँधेरे में ही आयेगी और उजाला होने से पूर्व ही चली जायेगी । " श्रावक आश्वस्त हो गया। han 50 श्राविका अपनी योजनानुसार अपनी सखी के पास गई और उसके वे वस्त्राभूषण मॉग लाई जिन्हें पहनकर उसकी सखी उसके घर आई थी। रात के अँधेरे में उसने सखि के वे वस्त्र पहने और अपने पति के पास चली गई । प्रातः होने से पूर्व ही वह वहाँ से चली आई और पुनः अपने सामान्य वस्त्राभूषण पहन लिये। प्रातः उसका पति उठकर पत्नी के पास आया और घोर ग्लानि तथा पश्चात्ताप करने लगा - "मैंने बड़ा अनर्थ किया है। अपने स्वीकार किए व्रत को तोड़ने का महापाप कर बैठा ।" पति को सच्चे हृदय से पश्चात्ताप करते देख श्राविका ने सारी बात बताकर पति को आश्वस्त किया और श्रावक-व्रतों के पालन में पुनः स्थिर हो जाने का उपदेश दिया। श्रावक का हृदय परिवर्तन हो गया और उसने अपने गुरु के पास जाकर प्रायश्चित्त कर पुनः व्रत धारण किए। पारिणामिकी बुद्धि-सम्पन्न श्राविका ने पति को पुनः धर्म में स्थिर कर दिया। (९) अमात्य - बहुत पुरानी बात है, काम्पिल्यपुर नगर पर ब्रह्म नामक राजा राज्य करता था । उसकी रानी चुलनी ने एक रात चक्रवर्ती के जन्मसूचक स्वप्न देखे और यथासमय एक पुत्र को जन्म दिया। पुत्र का नाम ब्रह्मदत्त रखा गया । ब्रह्मदत्त की बाल्यावस्था में ही राजा ब्रह्म का देहान्त हो गया। अपने अन्त समय में राजा ब्रह्म ने अपने मित्र एक पड़ौसी राजा दीर्घपृष्ठ को अपने पुत्र 155 के वयस्क होने तक राज्य शासन सँभालने का दायित्व सौंप दिया था। राजा ब्रह्म की मृत्यु के पश्चात् दीर्घपृष्ठ तथा चुलनी दोनों में प्रेम-सम्बन्ध स्थापित हो गये । राजा ब्रह्म का धनु नामक श्री नन्दी सूत्र ( २५८ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only Shri Nandisutra @55555555556 © **##555555555555555555555+ www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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