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________________ Ch i nthinharinitiatinihinhhhhhho उसी नगर में आये। राजा ने मुनि हुए अपने पिता को उसी नगर में चातुर्मास करने का आग्रह फ़ किया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। विद्वान मुनि के प्रवचनों से वहां का जन समुदाय बहुत है + प्रभावित हुआ। जिनशासन के विरोधी कतिपय समुदायों को यह बात सहन नहीं हुई और उन्होंने ॐ मुनि को बदनाम करने के लिए एक षड्यन्त्र रचा। जब चातुर्मास काल सम्पन्न हुआ और मुनिराज विहार की तैयारी करने लगे तो विरोधियों है की योजनानुसार एक गर्भवती दासी ने आकर मुनिराज से कहा-“हे मुनिवर ! मैं गर्भवती हूँ 卐 और शीघ्र ही आपके बच्चे को जन्म देने वाली हूँ। ऐसे समय में आप मुझे छोड कर चले जायेंगे तो मेरा सहारा कौन होगा?" मुनि समझ गये कि यह किसी विरोधी का षड्यन्त्र है और ऐसी स्थिति में यदि तत्काल प्रस्थान किया तो मेरा और धर्म संघ दोनों का अहित होगा। वे एक शक्ति सम्पन्न साधक भी थे। उन्होंने अपनी शक्ति का प्रयोग किया और दासी से बोले-“यदि यह गर्भस्थ जीव मेरा है तो तुम यथासमय स्वाभाविक प्रसव करोगी। किन्तु यदि ऐसा नहीं है तो यथासमय तुम्हारा प्रसव नहीं होगा और शिशु को तुम्हारा पेट चीर कर निकलना होगा।" दासी आसन्न-प्रसवा तो थी ही। कुछ दिन बीतने पर भी उसे प्रसव नहीं हुआ। धीरे-धीरे उसकी पीड़ा बढ़ने लगी। उसके स्वजन उसे ऐसी दयनीय अवस्था में मुनिराज के पास ले गये। + वह मुनिराज को वन्दना कर कातर स्वर में बोली-"श्रमण-श्रेष्ठ ! आपके विरोधियों के षड्यन्त्र है में भागी बन मैंने आप पर झूठा लांछन लगाया था। मुझे अपने किए का दण्ड मिल गया। मुझे 5 ॐ क्षमा करें तथा कृपा कर इस कष्ट से मुक्ति दिलावें।' Ea मुनि सरल व निष्कलुष मन के थे। उन्होंने तत्काल दासी को क्षमा कर दिया और अपनी शक्ति का प्रभाव हटा दिया। मुनिराज की कीर्ति चहुँ और फैल गई। (३) कुमार-एक राजकुमार को बालपन से ही मोदक अति प्रिय थे। एक बार किसी उत्सव के अवसर पर उसने बहुत स्वादिष्ट भोजन बनवाया जिसमें मोदक भी थे। अपने मित्रों के सहित जब वह भोजन करने लगा तो स्वाद के मारे सामर्थ्य से अधिक मोदक खा गया। परिणामस्वरूप उसे अजीर्ण हो गया। पीड़ा और अपचजनित दुर्गन्ध असहनीय हो उठी। तभी । ॐ उसके मन में विचार उठे-“इतने स्वादिष्ट और सुगंधित पदार्थ शरीर के संसर्ग से दुर्गन्धमय उच्छिष्ट बन गए। यह शरीर स्वयं उच्छिष्ट पदार्थों से बना है और इसके सम्पर्क में आने वाली प्रत्येक वस्तु अन्ततः अशुचि बन जाती है। धिक्कार है ऐसे शरीर को जिसके थोड़े से सुख के लिए 卐 मनुष्य इतने पाप करता है।" अशुचि के प्रति विरक्ति की यह भावना धीरे-धीरे शुभ परिणामों में ढल गई और उसे केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। ऐसी भावना की प्रेरक राजकुमार की पारिणामिकी के 卐 बुद्धि थी। (४) देवी-प्राचीन समय की बात है पुष्पभद्र नामक नगर में पुष्पकेतु नाम का राजा था। - संयोग से उसकी रानी का नाम पुष्पवती था, पुत्र का नाम पुष्पचूल तथा पुत्री का पुष्पचूला। + मतिज्ञान (पारिणामिकी बुद्धि) ( २४९ ) Mati.jnana (Parinamiki Buddhi) 至FFFFFFFFFFFF 听听听听听听听听听听听听听FF断听听四s 听听听听听听听听听听听听听听 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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