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________________ Oh 55555 फ्र एक साथ बैठाकर एक ही पाठ पढ़ाता रहा हूँ। किन्तु विनय के अभाव में तेरा ज्ञान अपूर्ण रह गया। मेरा पक्षपात नहीं यह तो तेरे अविनय का दोष है ।" अविनीत शिष्य लज्जित हुआ और पुनः मन लगाकर विनय के साथ अध्ययन करने लगा। (देखें चित्र १८ ) २. अर्थशास्त्र - इसी प्रकार अर्थशास्त्र का ज्ञान भी विनय द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। ३. लेखन-लेखन का अभ्यास भी विनयशीलता से ही हो सकता है। ४. गणित - गणित तथा अन्य सभी विषयों का ज्ञान प्राप्त करना भी विनय से ही संभव होता ५. कूप - एक भूवेत्ता अपने शिक्षक के पास अत्यन्त विनयपूर्वक शिक्षा ग्रहण करता था । उसने शिक्षक के प्रत्येक पाठ को ध्यान से समझा और उसकी प्रत्येक आज्ञा को विनयपूर्वक मानकर विषय का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर वह एक चमत्कारिक भूवेत्ता बन गया। एक बार किसी ग्रामीण ने उसे अपना खेत दिखाकर पूछा - "मेरे खेत में किस स्थान पर ओर कितना गहरा कुआँ खोदने से पानी निकलेगा ?" भूवेत्ता ने अपनी विद्या से अनुमान लगा उसे स्थान व गहराई बताई । किसान ने कुआँ खोदा किन्तु पानी नहीं निकला । वह पुनः भूवेत्ता के पास गया। भूवेत्ता ने खेत पर आकर कुएँ का भलीभाँति सूक्ष्म निरीक्षण किया और कहा - " इसके भीतर पार्श्व भाग में अमुक स्थान पर पाँव की एड़ी से प्रहार करो। " किसान ने वैसा ही किया और उस स्थान से पानी का स्रोत फूट पड़ा। किसान ने भूवेत्ता को यथेष्ट भेंट दी और उसकी प्रशंसा की। 55+ 卐 ऐसी विद्या वैनयिकी बुद्धि के द्वारा ही संभव है। ६. अश्व - एक बार बहुत-से व्यापारी अपने घोड़े बेचने द्वारका नगरी में आए। नगर के कई राजकुमारों ने पुष्ट और बड़े डीलडौल के अश्व खरीदे । किन्तु वासुदेव नाम के एक युवक ने, जो अश्व-परीक्षा में पारंगत था, एक दुबला-पतला घोड़ा खरीदा। आश्चर्य की बात यह थी कि जब भी घुड़दौड़ होती वासुदेव का दुबला-पतला घोड़ा ही दौड़ जीतता । इसका कारण वासुदेव की अश्व- परीक्षा में प्रवीणता थी । यह विद्या उसने अपने कलाचार्य से वडे विनयपूर्वक सीखी थी । विनय द्वारा बुद्धि तीक्ष्ण होती है तथा ज्ञान व अनुभव का विस्तार होता है । ७. गर्दभ - किसी नगर में एक युवा राजा राज्य करता था । उसका मानना था कि युवावस्था श्रेष्ठ होती है और युवक में ही अधिक शक्ति और परिश्रम की क्षमता होती है। अपनी इस मान्यता के चलते उसने धीरे-धीरे अपनी सेना के समस्त अनुभवी एवं वृद्ध योद्धाओं को निकाल दिया और युवकों को भर्ती कर लिया । श्री एक बार वह अपनी सेना सहित किसी राज्य पर आक्रमण करने निकला। बीच में ही मार्ग भटककर एक बीहड़ में जा पहुँचा । बहुत खोजने पर भी वहाँ से बाहर निकलने का मार्ग नहीं उस बीहड़ में कहीं पीने का पानी भी नहीं मिला । प्यास के मारे सारी सेना छटपटाने लगी । मिला। नन्दीसूत्र ( २२४ ) Jain Education International 555555555955555555555955 For Private & Personal Use Only Shri Nandisutra 5555555555555555555@ www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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