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EL.ELESEHLEELESO से लगा लिया और तत्काल पुत्र सहित विनीत शिष्य के पास लौटी और उसे दक्षिणा तथा अनेक आशीर्वाद दिए।
अविनीत शिष्य ने जब देखा कि उसकी सभी बातें मिथ्या निकल रही हैं और दूसरे शिष्य की सत्य तो उसे बड़ा दुःख हुआ। अपनी भूल समझने के स्थान पर वह अपने गुरु के प्रति क्रोध से भर गया-“यह सब गुरूजी के पक्षपात के कारण हुआ है। उन्होंने मुझे भली प्रकार शिक्षा नहीं दी।" जब दोनों गुरु के पास लौटे तो विनीत शिष्य कृतज्ञ भाव से गुरु के चरणों में झुका। किन्तु अविनीत ज्यों का त्यों अकड़कर खडा रहा। गुरु ने जब प्रश्न भरी दृष्टि से उसकी ओर देखा तो वह उलाहना भरे स्वर में बोला-"आपने मुझे अच्छी तरह शिक्षा प्रदान नहीं की। अतः मेरा ज्ञान अधूरा रह गया। इसे आपने मन लगाकर पढ़ाया। अतः इसका ज्ञान पूर्ण हो गया। आपको यह ॥ पक्षपात शोभा नहीं देता।" ____ गुरूजी चकित हो विनीत शिष्य से बोले-"वत्स ! क्या बात है? तुम्हारे गुरु-भाई के मन में है ऐसे विचार क्यों उठे? मुझे विस्तार से सब बताओ।" शिष्य ने समस्त घटना-क्रम ज्यों का त्यों बता दिया। । तब गुरु ने प्रश्न किया-"तुमने जो सब बातें बताईं उनका क्या आधार था?"
शिष्य-“गुरुदेव ! आपकी कृपा से मैंने यह देखा कि पद-चिह्न हाथी के हैं किन्तु रास्ते में गिरे मूत्र की धार पद-चिह्नों से दूरी से अनुमान किया कि वह हाथी नहीं, हथिनी है। मार्ग के ॐ दाहिनी ओर के वृक्षों के फल व पत्ते खाए हुए थे और बायीं ओर के ज्यों के त्यों, अतः मैं यह
समझ गया कि हथिनी बाएँ नेत्र से कानी है। हथिनी के पद-चिह्नों के साथ अनेक नर-नारियों के
तथा अश्वों के पद-चिह्न भी राह पर थे अतः यह अनुमान किया कि अवश्य ही हथिनी पर कोई ॐ राजपुरुष सवार था। कुछ दूर पर हथिनी के बैठने और उस पर से उतरकर किसी के लघुशंका है
के लिए झाड़ी की ओर जाने के पद-चिह्न भी स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। झाड़ी में उलझे बाल रेशम
के तंतुओं से यह अनुमान हुआ कि वह स्त्री अत्यन्त वैभवशाली तथा सुहागिन है अतः मैंने पर समझा कि वह अवश्य ही महारानी है। वह स्त्री लघुशंका के पश्चात् दाहिने हाथ को धरती पर 卐 +टिकाकर उसके सहारे खड़ी हुई अतः मैं यह समझा कि वह गर्भवती है। दाहिना पैर अधिक * भारी पड़ने के चिह्न से मैंने यह अनुमान किया कि उसका प्रसव काल निकट है। अन्य सभी । 卐 निमित्त इस ओर इंगित कर रहे थे कि वह पुत्र को जन्म देगी।"
गुरु ने गर्व व संतोष से उसकी ओर देखा। उसने फिर कहा-“वृद्धा के प्रश्न करते ही घड़े 卐 के गिरकर फूट जाने से मैंने यह अनुमान किया कि जैसे मिट्टी से बना घड़ा फिर मिट्टी में मिल
गया उसी प्रकार माता की कोख से जन्मा पुत्र पुनः माता से आ मिला है।" गरु ने सब बात :ॐ जान विनीत शिष्य की प्रशंसा की। अविनीत से गुरु ने समझाते हुए कहा-"तू न तो मेरी आज्ञा
का पालन करता है, न पढ़ाए पाठ पर चिन्तन-मनन करता और न ही अपनी शंकाओं का समाधान करता। ऐसी स्थिति में त सम्यग्ज्ञान का अधिकारी नहीं बन सकता। मैं तो तम दोनों को
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मतिज्ञान (वैनयिकी बुद्धि)
(२२३ )
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