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________________ CE%%%%%斯骑驗等等等等等等等等等等野戰第四 समय बीतने के साथ अभयकुमार बड़ा होने लगा। धीरे-धीरे उसने शिक्षा प्राप्त की और ॥ म अनेक शास्त्रों तथा कलाओं का विस्तृत ज्ञान प्राप्त किया। किशोर अभय ने एक दिन अपनी माता से पूछा-“माँ ! मेरे पिता कौन हैं और कहाँ रहते हैं ?" नंदा ने उपयुक्त समय आया जानकर ॐ अभयकुमार को श्रेणिक का पत्र दिया और अपने जीवन की सारी कथा आद्योपान्त सुनाई। पिता के का परिचय पाकर अभयकुमार बहुत प्रसन्न हुआ और राजगृह जाने को व्यग्र हो उठा। उसने अपनी माता से आज्ञा माँगी तो वह स्वयं भी उसके साथ जाने को तैयार हो गईं। माता-पुत्र यात्रा म की तैयारी कर उसी दिन एक सार्थ के साथ राजगृह के लिए रवाना हो गए। कुछ दिनों की यात्रा के बाद सार्थ राजगृह पहुँचा। नगर के बाहर एक मनोरम उद्यान में म पडाव डाला गया। अभयकुमार ने अपनी माता को सार्थ की देखरेख में वहीं छोड़ा और नगर में प्रवेश किया। वह यह जानना चाहता था कि नगर का परिवेश कैसा है और राजा के समक्ष किस # उपाय से पहुंचा जा सकता है। नगर में कुछ दूर चलने पर उसे एक स्थान पर लोगों की भीड दिखाई दी। उत्सुकतावश ॐ अभयकुमार वहाँ पहुँचा तो पता चला कि एक सूखे कुएँ के चारों ओर भीड एकत्र है। पूछने पर + उसे बताया गया कि राजा की स्वर्ण-मुद्रिका उस सूखे कुएँ में गिर गई है और राजा ने घोषणा की है कि जो व्यक्ति बिना कुएँ में उतरे अपने हाथ से वह मुद्रिका निकाल देगा राजा उसे प्रचुर ॐ पुरस्कार प्रदान करेंगे। भीड़ अँगूठी निकालने का उपाय खोजने वालों की थी पर कोई तब तक सफल नहीं हो सका था। ___अभयकुमार ने कहा-“यदि मुझे अनुमति मिले तो मैं मुद्रिका निकाल सकता हूँ।" पास खड़े 5 नागरिक ने तत्काल यह बात राज्य-कर्मचारियों को बताई। यह जानकर कि कोई बुद्धिमान् व्यक्ति के इस भीड में आ पहुंचा है, राज्य-कर्मचारियों ने अभयकुमार से अनुरोध किया कि राजा की + मुद्रिका निकाल दे। अभयकुमार ने वहीं पास पड़ा ताजा गोबर हाथ में उठाया और सावधानी से मुद्रिका परक डाल दिया। कुछ घंटों बाद गोबर का वह पोठा सूख गया और मुद्रिका उसमें चिपक गई। अब अभयकुमार ने राज्य-कर्मचारियों की सहायता से कुएँ में पानी भरवाया। कुछ देर में जैसे ही 卐. पानी की सतह ऊँची आई गोबर का पोठा भी तैरता हुआ ऊपर आ गया। बस अभयकुमार ने के * हाथ बढाया और उसे उठा लिया। पोठे को तोड़कर मुद्रिका निकाली और पानी में धोकर राजा के आदमियों को दे दी। ये समाचार जब राजा श्रेणिक के पास पहुंचे तो वह आश्चर्यचकित रह 卐 गया। उसने तत्काल दूत भेजकर अभयकुमार को बुलवाया और स्वागत कर पूछा-"वत्स ! तुम कौन हो और कहाँ से आए हो?" + अभयकुमार ने सादर उत्तर दिया-“देव ! मैं आपका ही पुत्र हूँ।" राजा श्रेणिक अभयकुमार के इस उत्तर से ठगे-से रह गए। अपने पिता के विस्मय से विस्फारित नेत्र देख अभयकुमार ने ॐ अपने जन्म से लेकर राजगृह आने तक का सारा वृत्तान्त सुनाया। राजा श्रेणिक गद्गद हो गए 5 मतिज्ञान (औत्पत्तिकी बुद्धि) ( १८७ ) Mati-jnana (Autpattiki Buddhi) 中 写与编写%% %%%%%% % %%%%%%%岁岁写步步助 055听听听听听听听听听听听听听听FF乐乐ms F听听听听听听听听听听听$ 听听听听听听听听听 5 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听%%%%%ssss Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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