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E LEASELELE LELELEELLELE LEEEEEEEEEEEEEEEETHEIO चलते-चलते एक दिन वह वेन्नातट नाम के नगर में पहुंचा और एक व्यापारी की दुकान पर फ्र विश्राम करने के लिए बैठ गया। यह व्यापारी भाग्य का मारा अपना समस्त धन-वैभव खो चुका है
था और किसी तरह बुरे दिन बिता रहा था। संयोगवश कुमार श्रेणिक के वहाँ बैठने से जैसे 5
उसके भाग्य ने पलटा खाया। कुछ ही देर में उसका पुराना माल ऊँचे दामों में बिकना चालू हो फ़ गया और साथ ही विदेश से आये व्यापारियों से सौदा करने में उसे बहुमूल्य रत्न बहुत नीचे
दामों में मिल गए। इस अनहोनी घटना से उसके मन में विचार उठे-“आज मुझे इतना * अप्रत्याशित लाभ हुआ है। हो न हो यह इस तेजस्वी युवक की उपस्थिति का परिणाम लगता है। म यह अवश्य ही कोई महान् पुण्यात्मा है।'' म उसे पिछली रात देखा स्वप्न भी याद हो आया। उसने देखा था कि उसकी पुत्री का विवाह + एक 'रत्नाकर' से हो रहा है। व्यापारी के मन में फिर विचार उठा-"जिसके बैठने मात्र से इतना
लाभ हो वही तो रत्नाकर हो सकता है।" उत्सुकतावश उसने श्रेणिक से पूछा-“आप इस नगर 卐 में किसके अतिथि बनकर आए हैं ?' श्रेणिक ने मधुर और विनम्र स्वर में कहा-"श्रीमान् ! मैं
तो आपका ही अतिथि हूँ।" आत्मीयता की इस अभिव्यक्ति ने व्यापारी का मन मोह लिया। वह 2 बड़े स्नेह से श्रेणिक को अपने घर ले गया।
श्रेष्ठ भोजनादि से युवक का सत्कार कर उसे घर में ही ठहरने का आग्रह किया। श्रेणिक ने ॐ भी यह सोचकर कि कहीं तो रहना ही पड़ेगा, निमन्त्रण स्वीकार कर लिया। सौभाग्यवश उस ॥ + व्यापारी का व्यवसाय व प्रतिष्ठा दिनोंदिन बढ़ती ही गई। कछ ही दिनों में उसने अपनी खोई है
सम्पदा और साख पुनः प्राप्त कर ली। वह इसे श्रेणिक के ही पुण्य का प्रताप समझता था। कुछ 卐 दिनों बाद उसने अपनी सुयोग्य व सुन्दर पुत्री नंदा का विवाह श्रेणिक से कर दिया। श्रेणिक भी है + अब अपनी ससुराल में पत्नी के साथ सुख से दाम्पत्य जीवन व्यतीत करने लगा। कुछ समय बीतने पर नंदा गर्भवती हो गई।
उधर श्रेणिक के पलायन से राजा प्रसेनजित बहुत दुःखी थे। उन्होंने चारों ओर श्रेणिक की खोज में अपने गुप्तचर भेज दिये। बहुत दिनों बाद कुछ गुप्तचरों ने आकर श्रेणिक के वेन्नातट 卐 नामक नगर में होने की सूचना दी। राजा ने श्रेणिक को लौटा लाने के लिए कुछ सैनिक भेजे।
श्रेणिक को जब राजा के दूतों ने राजा का संदेश दिया और कहा कि राजा उसके वियोग में ॐ व्याकुल रहते हैं तो श्रेणिक ने तत्काल लौटने का निश्चय किया। एक पत्र में अपना पूरा परिचय
लिखकर नंदा को दे दिया और उसकी अनुमति लेकर राजगृह को प्रस्थान कर गया। ॐ नंदा के गर्भ में देवलोक से च्युत होकर एक आत्मा आई थी। उसके पुण्य-प्रभाव से एक दिन है ॐ नंदा को दोहद उत्पन्न हुआ कि वह एक विशाल हाथी पर आरूढ होकर नगर-निवासियों को
धनदान और अभयदान दे। नंदा के पिता ने सहर्ष उसका दोहद पूर्ण किया। यथासमय नंदा ने म एक सुंदर, चंचल और हृष्ट-पुष्ट शिशु को जन्म दिया। इस तेजस्वी बालक का जन्मोत्सव मनाया
गया और उसका नाम अभयकुमार रखा गया।
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ॐ श्री नन्दीसूत्र
( १८६ )
Shri Nandisutra 04555555555555555556
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