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| १६. चित्र परिचय
Illustration No. 16
मति-श्रुत ज्ञान १. आभिनिबोधिक ज्ञान-सम्मुख आये हुए पदार्थों को पांचों ही इन्द्रिय एवं मन की सहायता से जानना-आभिनिबोधिक-मतिज्ञान कहलाता है।
जैसे कोई चक्षु इन्द्रिय द्वारा शुक आदि का रूप देखता है, श्रोत्रेन्द्रिय द्वारा वाद्य का शब्द सुन रहा है। घ्राण इन्द्रिय द्वारा फूलों की सुगंध ले रहा है। जिह्वा इन्द्रिय द्वारा आम ॐ आदि का रस चख रहा है और हाथ में रखी बर्फ का शीतल स्पर्श भी स्पर्शनेन्द्रिय
द्वारा कर रहा है। इन सबका ज्ञान इन्द्रियों द्वारा मन तक पहुँच रहा है। यह मतिज्ञान है। म (सूत्र ४५) म २. श्रुतज्ञान-शब्द सुनकर या अक्षर पढ़कर मन के द्वारा जो वाच्य पदार्थ का ज्ञान भ होता है वह श्रुतज्ञान है। जैसे-एक को पुस्तक का पाठ करते उच्चारित शब्द सुनाई देता है
है, यह अक्षर श्रुत है। नगाड़े आदि का शब्द अनक्षर श्रुत में गिना जाता है। दोनों ही ॐ श्रुतज्ञान में समाविष्ट हैं। (सूत्र ४५ तथा सूत्र ७३-७४)
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MATI-SHRUT-JNANA 1. Abhinibodhik-jnana-To know things before one with the help of 4 five sense organs and mind is called abhinibodhik mati-jnana. For i
example-Seeing form with eyes. Hearing with ears the sound of birds Fi or musical instruments. Smelling with nose the fragrance of flowers. 41 \ Tasting with tongue the taste of mango juice etc. Experiencing with
hands the cold touch of ice. All this knowledge collected through the sense organs is reaching the mind. This is mati-jnana. (45)
2. Shrut-jnana—The knowledge about a thing acquired through hearing a sound or reading the alphabets is shrut-jnana. For 4 example one hears the recited text; this is Akshar shrut. The sound 41 of drums etc. is anakshar shrut. Both are included in shrut-jnana. (45
and 73-74)
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