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________________ 等等等等等等等等等等等等等等等等等等 विषय-बोधक चित्र और अंग्रेजी भाषानुवाद के कारण इन शास्त्रों की उपयोगिता दुगुनी बढ़ गई 卐 है। इस प्रकार एक तरह से पूज्य गुरुदेव द्वारा प्रवाहित ज्ञान-धारा का क्षेत्र विस्तृत ही बना है। और यह हमारे लिए आनन्द एवं प्रमोद का विषय है। श्रुत-सेवा की भावना से जितने अधिक जिज्ञासु आगम स्वाध्याय करें उतना ही लाभ है यह मेरी धारणा है तथा मेरे पूज्य गुरुदेव म भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज को भी इसमें प्रसन्नता होती है। वे आगम सेवा-कार्य से बहुत आनन्दित हैं। 听听$$$$$$听听听听听听听听听听听听听听听听 नन्दीसूत्र नन्दीसूत्र का सचित्र संस्करण पाठकों के हाथों में है। नन्दी का अर्थ है-मंगलकारी, आनन्दकारी। ज्ञान का आलोक सबसे अधिक मंगलकारी और आनन्ददायी माना गया है। क्योंकि + “नाणेण नज्जए चरणं।"-ज्ञान से ही चारित्र धर्म का बोध प्राप्त होता है। चारित्र रूप संयम-तप की आराधना तभी हो सकती है जब हमें उस विषय का सम्यग्ज्ञान होगा। इसलिए ज्ञान से जीवन में धर्म का आलोक एवं संयम-तप का मंगलमय मार्ग मिलता है। इसलिए ज्ञान ही सबसे बड़ा ॐ मंगल है। "ऋते ज्ञानान् न मुक्तिः।"-ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं। मुक्ति के बिना शाश्वत आनन्द, म अनन्त सुख कैसे, कहाँ मिलेगा। नन्दीसूत्र का विषय ___ नन्दीसूत्र में मुख्य रूप में मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव एवं केवलज्ञान रूप पाँच ज्ञान का वर्णन है। इन पाँच ज्ञानों के विस्तृत भेद-प्रभेद और स्वरूप का कथन इस सूत्र में संग्रहीत है। ३२ ॐ आगमों में नन्दीसूत्र की गणना चार मूल आगमों में है। मूल का अर्थ है, आधारभूत तत्व। धर्म का मूल है-सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तप। प्रथम मूल आगम, उत्तराध्ययन में ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप का विविध प्रकार से वर्णन किया गया है। दूसरे ॐ मूल आगम दशवैकालिकसूत्र में मुख्य रूप में सम्यक् चारित्र और तप का वर्णन है। तृतीय मूल म आगम नन्दीसूत्र में सम्यग्ज्ञान के भेद-प्रभेदों का विस्तृत वर्णन है और जिनवाणी के मूल आधारभूत द्वादशांग का भी परिचय है। चतुर्थ मूल आगम अनुयोगद्वार में सम्यग्ज्ञान का नय, ॐ निक्षेप, प्रमाण आदि दृष्टियों से वर्णन है। प्राचीन धारणा के अनुसार नन्दीसूत्र सीधे रूप में भगवान के श्रीमुख से निःसृत वाणी नहीं क है। यह जिनवाणी का संकलन है, जो स्थानांग, समवायांग, प्रज्ञापना और भगवतीसूत्र में बिखरे फूलों की तरह विद्यमान है। उक्त आगमों में अनेक प्रसंगों में अनेक प्रकार से ज्ञान-सम्बन्धी जो प्ररूपणा की गई है उन सबै पाठों को एक स्थान पर संकलित कर देने से एक ही स्थान पर पाँच + ज्ञान-सम्बन्धी सभी जानकारी प्राप्त हो जाती है। ॐ बत्तीस सूत्रों में रचना की दृष्टि से और संकलन-समय की दृष्टि से इसका अन्तिम स्थान है। + जैन-परम्परा के इतिहास अनुसार भगवान श्री महावीर स्वामी के निर्वाण के १७0 वर्ष पश्चात् 听听F%听听听听听听听听乐听听听听听听$$$$$$ $$$$听听听听听听听听听听听听听听听听听 听听F%$$$听。 ( १० ) 全场$$$$$场玩玩吓所听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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