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शशशश के
matter. The ultimate capacity of Avadhi-jnana is that, with its help every existing matter in the inhabited universe can be seen and known. The Avadhi-jnana that knows even a single space point beyond that, in the alokakash, is classified as Apratipati. This is because once it attains this ultimate state it does not decline. It is फ्र singularly progressive and within antarmuhurt ( less than 48 mts.) gives rise to Kewal-jnana.
द्रव्यादि क्रम से अवधिज्ञान का वर्णन
AVADHI-JNANA WITH REFERENCE TO THE FOUR PARAMETERS २५ : तं समासओ चउव्विहं पण्णत्तं, तं जहा - दव्वओ खित्तओ कालओ भावओ। तत्थ दव्वओ णं ओहिणाणी जहण्णेणं अणंताई रूविदव्वाइं जाणइ पासइ, उक्कोसेणं सव्वाइं रूविदव्वाइं जाणइ पासइ ।
खित्तओ णं ओहिनाणी जहणणेणं अंगुलस्स असंखिज्जाइं भागं जाणइ पासइ ।
उक्कोसेणं असंखिज्जा अलोग लोइप्पमाणमित्ताई खंडाई जाणइ पास |
पासइ ।
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कालओ णं ओहिणाणी जहण्णेणं आवलियाए असंखिज्जइं भागं जाणइ पासइ, उक्कोसेणं असंखिज्जाओ उस्सप्पिणीओ अवसप्पिणीओ अइमणागयं च कालं जाणइ
भावओ णं ओहिणाणी जहणेणं अनंते भावे जाणइ पासइ, उक्कोसेण वि अणते भावे जाणइ पास, सव्वभावाणमणंतभागं जाणइ पासइ ।
अर्थ- उपरोक्त अवधिज्ञान संक्षेप में चार प्रकार का कहा गया है। यथा - द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । ये इस प्रकार हैं
(१) द्रव्य से - अवधिज्ञानी कम से कम अनन्त रूपी द्रव्यों को देखता - जानता है और अधिक से अधिक सभी रूपी द्रव्यों को देखता - जानता है।
(२) क्षेत्र से - अवधिज्ञानी कम से कम अंगुल के असंख्यातवें भाग के बराबर क्षेत्र को और अधिकतम अलोक के लोक के बराबर असंख्यात खण्डों को देखता - जानता है ।
भाग तथा
(३) काल से - अवधिज्ञानी न्यूनतम एक आवलिका (समय का माप) के असंख्यातवें के बराबर काल को और अधिकतम अतीत व अनागत की असंख्यात उत्सर्पिणियों अवसर्पिणियों के बराबर काल को देखता - जानता है।
अवधिज्ञान
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Avadhi-Jnana
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