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550 15 Elaboration--Pratipati means that which falls. As a lamp is i suddenly extinguished by a gust of wind so does Pratipati Avadhi
jnana vanish at once, and not gradually. This knowledge can be 5 acquired suddenly at any moment during a life time and can be lost
in the same manner.
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अप्रतिपाति अवधिज्ञान का स्वरूप
APRATIPATI AVADHI-JNANA २४ : से किं तं अपडिवाइ ओहिणाणं ?
अपडिवाइ ओहिनाणं जेणं अलोगस्स एगमवि आगासपएसं जाणइ-पासइ तेणं परं अपडिवाइ ओहिनाणं।
से तं अपडिवाइ ओहिणाणं। ई अर्थ-प्रश्न-यह अप्रतिपाति अवधिज्ञान कैसा होता है ?
उत्तर-जिस ज्ञान से अलोक के एक भी आकाश-प्रदेश को भी जाना-देखा जाता है वह नष्ट न होने वाला ज्ञान अप्रतिपाति अवधिज्ञान कहलाता है।
24. Question-What is this Apratipati Avadhi-jnana ?
Answer-That indestructible knowledge in light of which even a single space point in alok or alokakash (the empty space beyond the inhabited universe) can be seen and known is known i as Apratipati Avadhi-jnana.
विवेचन-अप्रतिपाति अवधिज्ञान को उसके सामर्थ्य की चरमता से समझाया गया है। ॐ अलोकाकाश द्रव्यरहित होता है और अवधिज्ञान का विषय मात्र द्रव्य (रूपी द्रव्य) होता है। + अवधिज्ञान की चरम अवस्था यह है कि उससे लोक में रहे सभी द्रव्यों को देखा व जाना जा
सकता है। जो ज्ञान उसमें भी पर (अन्तिम छोर) अलोक आकाश के भी एक प्रदेश को जान फ़ सके वैसा अवधिज्ञान अप्रतिपाति कहलाता है क्योंकि इस चरम अवस्था के पश्चात् उसकी हानि
नहीं होती वह तो एकान्त विकासमय होता है और अन्तर्मुहूर्त में ही केवलज्ञान उत्पन्न कर देता है।
Elaboration-Apratipati Avadhi-jnana has been explained with the help of its maximum or ultimate capacity. Alokakash is devoid of 10 matter whereas the subject of Avadhi-jnana is matter or tangible - श्री नन्दीसूत्र
( १०२ )
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