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________________ 655 फ्र 卐 प्रश्न- यह अन्तगत अवधिज्ञान कैसा है ? 5 + IT IF IT LE LE LC LELE LE उत्तर - यह अन्तगत अवधिज्ञान तीन प्रकार का है - ( १ ) पुरतः अन्तगत ( आगे से अन्तगत), (२) मार्गतः अन्तगत ( पीछे से अन्तगत), तथा ( ३ ) पार्श्वतः अन्तगत (पार्श्व से अन्तगत ) | प्रश्न- पुरतः अन्तगत अवधिज्ञान कैसा है ? उत्तर मणि, - जैसे कोई व्यक्ति दीपिका, घास की जलती हुई पूली, जलता हुआ काष्ठ, प्रदीप अथवा किसी पात्र में जलती हुई अग्नि रखकर हाथ से अथवा डण्डे से उसे आगे कर धीरे-धीरे उसके द्वारा उत्पन्न प्रकाश से मार्ग में रही वस्तुओं को देखता हुआ चलता है । उसी प्रकार पुरतः अन्तगत अवधिज्ञान आगे के प्रदेश में प्रकाश करता हुआ साथ चलता है। प्रश्न- मार्गतः अन्तगत अवधिज्ञान कैसा है ? उत्तर - जैसे कोई उपरोक्त प्रकार के प्रकाश साधनों - दीपिका, मणि, प्रदीप आदि को अपने पीछे रखकर उसके प्रकाश से मार्ग में रही हुई वस्तुओं को देखता चलता है। उसी प्रकार मार्गतः अन्तगत अवधिज्ञान पीछे के प्रदेश में प्रकाश करता हुआ चलता है। प्रश्न- पार्श्वतः अन्तगत अवधिज्ञान कैसा है ? ॐ उत्तर - जैसे कोई उपरोक्त दीपिका घास की पूली आदि प्रकाश साधनों को अपने पार्श्व फ्र (बगल) में रखकर उसके प्रकाश से मार्ग में रही वस्तुओं को देखता हुआ चलता है । उसी प्रकार पार्श्वतः अन्तगत अवधिज्ञान पार्श्व में रहे प्रदेश में प्रकाश करता हुआ चलता है। यह अपने स्तरानुसार एक पार्श्व को अथवा दोनों पार्श्वों को उद्भासित करता है। यह अन्तगत अवधिज्ञान का वर्णन है । 5 प्रश्न - मध्यगत अवधिज्ञान कैसा है ? उत्तर र-जैसे कोई व्यक्ति उपरोक्त उल्का, दीपिका, मणि आदि अनेक प्रकार के प्रकाश साधनों को अपने मस्तक पर उठाकर उसके प्रकाश से मार्ग में रही वस्तुओं को देखता 卐 हुआ चलता है। उसी प्रकार मध्यगत अवधिज्ञान सभी दिशाओं में प्रकाश करता हुआ चलता है। (देखें चित्र ८ ) फफफ श्री नन्दीसूत्र 10. Question- What is this Anugamik avadhi-jnana ? Answer-Anugamik or attendant avadhi-jnana is said to be of two types-—1. Antgat (peripheral) and Madhyagat (central). Jain Education International ( ८४ ) For Private & Personal Use Only Shri Nandisutra ← ମ ! ! ! ! ! !5 46 6 6 6 6 4 5 6 4 5 6 फ्र 5 5 5 @*********56 फ्र 5 www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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