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________________ --- - PAPanamIPneu RELESSUE 分听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 म है, किन्तु इसमें चिन्तन-मनन आदि क्रियाओं का आधिक्य होने के कारण इसे मुख्यतया मन का विषय माना गया है। श्रुतज्ञान के दो भेद बताये गये हैं-(१) अर्थश्रुत-केवलज्ञानी अरिहन्त प्रत्यक्ष के रूप से जानकर जो प्रतिपादित करते हैं वह अर्थश्रुत कहलाता है। (२) सूत्रश्रुत--अरिहन्त के इस के प्रवचन को उनके गणधर सूत्ररूप में संकलित कर जिसे प्रकट करते हैं वह सूत्रश्रुत कहलाता है। 卐 जैसा कि कहा गया है अत्थं भासइ अरहा, सुत्तं गंथंति गणहरा निउणं। सासणस्स हियट्ठाए, तओ सुत्तं पवत्तेई । अर्थात् अरिहन्त अर्थ कहते हैं और उसे शासन-हित के लिए गणधर सूत्ररूप में गूंथते हैं। (३) अवधिज्ञान-इन्द्रिय और मन पर निर्भर रहे बिना केवल आत्मा के द्वारा रूपी तथा मूर्त्त । +पदार्थों का साक्षात् कर लेने वाले ज्ञान को अवधिज्ञान कहते हैं। इसमें केवल रूपी पदार्थों को देखने-जानने की क्षमता होती है, अरूपी पदार्थ इसकी सीमा से परे हैं। अर्थात् इसके द्वारा आत्मा ॐ का दर्शन नहीं हो सकता। अन्य शब्दों में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव मर्यादा (अवधि-सीमा) से यह ज्ञान मूर्त द्रव्यों को प्रत्यक्ष करने की शक्ति रखता है। 9 (४) मनःपर्यवज्ञान-जब मन किसी वस्तु का चिन्तन करता है तथा उस वस्तु के अनुरूप मन भी भिन्न-भिन्न आकृतियाँ धारण करता है, इन्हें मन का पर्याय कहते हैं। समनस्क अथवा संज्ञी जीव के चिन्तन के इन परिणामों को जिस ज्ञान से ग्रहण किया जा सके वह मनःपर्यवज्ञान क कहलाता है। (५) केवलज्ञान-केवल शब्द के विभिन्न अर्थों से इस ज्ञान का समग्र अर्थ समझा जा सकता 卐 है। इन अर्थों के आधार पर संक्षेप में व्याख्या इस प्रकार हैॐ केवल अर्थात् एक मात्र-जिसके उत्पन्न होने से उपरोक्त चारों ज्ञान इस एक मात्र ज्ञान में विलीन हो जायें उसे केवलज्ञान कहते हैं। 4 केवल का अर्थ अकेला, पर-सहायता से निरपेक्ष-जो ज्ञान विना किसी अन्य सहायता या +निमित्त के रूपी-अरूपी, मूर्त-अमूर्त सभी वस्तुओं तथा विषयों को प्रत्यक्ष कर देता है, जिसे मन, - इन्द्रिय, देह व किसी प्रकार के यंत्र आदि माध्यम की आवश्यकता नहीं होती उसे केवलज्ञान फ कहते हैं। __केवल का अर्थ है विशुद्ध। चारों क्षायोपशमिक ज्ञान विशुद्ध होते हैं किन्तु जो विशुद्धतम है 卐 उसे ही केवलज्ञान कहते हैं। अन्य चारों ज्ञान कषाय के अंश सहित होते हैं किन्तु केवलज्ञान उनसे रहित होता है। है केवल का अर्थ है परिपूर्ण। क्षायोपशमिक ज्ञान किसी एक पदार्थ के सभी पर्यायों को नहीं है जान सकते। जो समस्त द्रव्यों के समस्त पर्यायों को जान सके ऐसा परिपूर्ण ज्ञान केवलज्ञान 卐 कहलाता है। श्री नन्दीसूत्र ( ७० ) Shri Nandisutra $555555岁岁岁万万岁万万岁岁岁步步步步步步步步步步步为与劳方中 45$55F5%听听FF乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 5555555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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