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________________ 5 राना 2 ॐ * ॐ * * 56 ज्ञान-मीमांसा THE DISCUSSION ABOUT KNOWLEDGE १ : नाणं पंचविहं पण्णत्तं, तंजहा (१) आभिणिबोहियनाणं, (२) सुयनाणं, (३) ओहिनाणं, (४) मण- पज्जवनाणं, (५) केवलनाणं । अर्थ- ज्ञान के पाँच प्रकार / भेद बताये गये हैं- ( १ ) आभिनिबोधिक ज्ञान, (२) श्रुतज्ञान, (३) अवधिज्ञान, (४) मनः पर्यवज्ञान, तथा (५) केवलज्ञान । विवेचन-यद्यपि भगवान की स्तुति, गणधरों को तथा स्थविरों को वन्दना आदि के द्वारा सूत्रकार ने प्रथम मंगलाचरण कर दिया है किन्तु मूल सूत्र का प्रथम सूत्र होने के कारण इस सूत्र 5 को भी मंगलाचरण माना जाता है। ज्ञान के भेद यहाॅ नामरूप में दिये गये हैं जिनकी विस्तार से चर्चा आगे प्रश्नोत्तर शैली में की गई है। 1. Jnana or knowledge is said to be of five types— 1. Abhinibodhik-jnana, 2. Shrut-jnana, 3. Avadhi-jnana, 4. Manahparyav-jnana, and 5. Kewal-jnana. *50 Jain Education International ज्ञान का अर्थ है पदार्थ अथवा तत्त्व को यथार्थ रूप से या यथार्थ स्वरूप में जानना । इस सूत्र के वृत्तिकार ने ज्ञान शब्द को केवल भाव-साधन तथा करण - साधन के रूप में प्रयुक्त किया है। अर्थात् स्वरूप-बोध भाव साधनरूप है। जैसे - णाती णाणं- जानना ही ज्ञान है, तथा णज्जइ अणेति नाणं-जिस क्रिया द्वारा स्वरूप बोध हो - " ज्ञायते परिच्छिद्यते वस्त्वनेनाऽस्मादस्मिन्वेति वा ज्ञानं । " - जिसके द्वारा वस्तु का स्वरूप जाना जाये वह ज्ञान है। यह वह करण साधनरूप हैं। शास्त्रीय परिभाषा में ज्ञानावरणीय कर्मों के क्षय अथवा क्षयोपशम से तत्त्व के यथार्थ रूप का बोध होने का नाम ज्ञान है। ज्ञान के उपरोक्त पाँच भेदों में प्रथम चार क्षयोपशमजनित होते हैं। तथा अन्तिम क्षयजनित । ज्ञान के पाँच भेदों का संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है (१) आभिनिबोधिक ज्ञान अथवा मतिज्ञान - पाँच इन्द्रियों तथा मन के माध्यम से आत्मा द्वारा सामने आये पदार्थों को उनके प्रकट स्वरूप में जान लेना आभिनिबोधिक ज्ञान है । इसका प्रचलित नाम मतिज्ञान है। (२) श्रुतज्ञान - शब्द को सुनकर जो अर्थ ग्रहण किया जाता है उसे श्रुतज्ञान कहते हैं। यह ज्ञान भी इन्द्रियों तथा मन के द्वारा ही ग्रहण किया जाता है अथवा उनके निमित्त ही उत्पन्न होता 5 ज्ञान मीमांसा ( ६९ ) The Discussion about Knowledge 65 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 55 5 4 5 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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