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प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात
changing, fragrant and beautiful cover of all season vegetation. Crossing numerous land masses and water bodies and throwing his divine light over the earth and the town of Rajagriha, that god appeared before Abhay Kumar and said
[Another text : With a speed that was superlative, fast, quick, tremendous, lion-like, sharp, over-powering, controlled and divine, that god arrived at the Paushadhashala in Rajagriha and hovering in the sky near Abhay Kumar he uttered sweetly-]
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सूत्र ४७. “अहं णं देवाणुप्पिया ! पुव्वसंगतिए सोहम्मकप्पवासी देवे महड्ढिए, जं णं तुमं पोसहसालाए अट्ठमभत्तं परिहित्ता णं ममं मणसि करेमाणे चिट्ठसि तं एस णं देवाणुप्पिया ! अहं इहं हव्वमागए । संदिसाहि णं देवाणुप्पिया ! किं करोमि किं दामि ? किं पयच्छामि ? किं वा ते हिय इच्छितं ? "
सूत्र ४७. "हे देवानुप्रिय ! मैं तुम्हारे पूर्व भव का मित्र सौधर्मकल्पवासी महाऋद्धि धारक देव हूँ। तुमने पौषधशाला में तपस्या कर मेरा आह्वान किया इसलिए मैं तत्काल यहाँ आया हूँ। हे देवानुप्रिय ! बताओ मैं तुम्हारा क्या काम करूँ ? तुम्हें अथवा तुम्हारे किसी प्रिय व्यक्ति को क्या दूँ ? क्या हित इच्छित है ? अपनी इच्छा प्रकट करो। "
47. “O beloved of gods! I am the all powerful god from the Saudharma Kalpa, your friend from an earlier birth. In response to your ritual invocation I have appeared here without any delay. O beloved of gods! Tell me what can I do for you? What is the benefit that you seek? Please express your desire."
सूत्र ४८. तए णं से अभए कुमारे तं पुव्वसंगतियं देवं अंतलिक्खपडिवन्नं पास | पासित्ता हट्ठतुट्ठ पोसहं पारेइ, पारित्ता करयल. अंजलिं कट्टु एवं वयासी
एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवे अकालडोहले पाउब्भूते-धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ ! तहेव पुव्वगमेणं जाव विणिज्जामि । तं णं तुमं देवाणुप्पिया ! मम चुल्लमाउयाए धारिणीए अयमेयारूवं अकालदोहलं वहि।
सूत्र ४८. यह देववाणी सुन, आकाश में रहे अपने मित्र देव को देख अभयकुमार प्रसन्न हुए और अपना पौषध पूर्ण किया। दोनों हाथ जोड़कर बोले - "हे देवानुप्रिय ! मेरी छोटी माता धारिणी देवी को अकाल- मेघ का दोहद ( पूर्व वर्णित ) उत्पन्न हुआ है। मेरी अभिलाषा है कि आप उस अकाल दोहद को पूरा करें।"
CHAPTER-1 : UTKSHIPTA JNATA
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