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प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात
की जाज्वल्यमान मणियाँ बनाने के लिए उनके स्थूल पुद्गलों का त्याग कर केवल सारभूत सूक्ष्म पुद्गलों का ग्रहण किया जाता है - ( १ ) कर्केतन, (२) हीरा - वज्ररत्न, (३) वैडूर्यलसनिया, (४) लोहिताक्ष, (५) मसारगल्ल, (६) हंसगर्भ, (७) पुलक, (८) सौगंधिक, (९) ज्योतिरस, (१०) अंक, (११) अंजन, (१२) रजत, (१३) जातरूप, (१४) अंजन पुलक, (१५) स्फटिक, और (१६) रिष्ट ।
बैक्रिय शरीर बनाने पर उसे पुनः पूर्व भव की स्मृति से अभयकुमार पर प्रीति, अनुराग और अनुकम्पा जाग उठी और विषाद (वियोग होने के कारण) उत्पन्न हुआ। वह अपने उत्तम रत्न से बने विमान को छोड़ तीव्र गति से पृथ्वी की ओर चल पड़ा। उसने कानों में शुद्ध सोने के कर्णफूल पहने हुए थे जो इधर-उधर हिल रहे थे । माथे पर मुकुट पहन रखा था। कमर में कटिसूत्र पहना हुआ था जिसमें अनेक रत्न जड़े थे। कानों के हिलते कुंडलों से उसका मुखमंडल आभामय हो रहा था और उसकी मुख मुद्रा प्रसन्नतामय थी। ऐसा लग रहा था मानो पूर्णिमा की रात में शनि और मंगल ग्रहों के बीच शारदीय चन्द्र का उदय हुआ हो। जैसे कोई पर्वत शृंग दिव्य औषधियों के प्रकाश से मनोहर लगता है वैसे ही वह मुकुट आदि की चमक से प्रभासित हो रहा था। समस्त ऋतुओं के वनस्पति भण्डार की वर्द्धमान शोभा और सुगन्ध से मनोहर बने मेरु पर्वत के समान वह देव नयनाभिराम लग रहा था, ऐसी विचित्र थी उसकी वेश-भूषा । अनेकानेक द्वीपों और समुद्रों के बीच से होता हुआ, अपने दिव्य प्रकाश से भूमण्डल और राजगृह नगर को प्रकाशित करता वह देव अभयकुमार के सामने प्रकट हुआ और बोला
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[ अन्य पाठ-तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवन्ने दसद्धवन्नाइं सखिंखिणियाई पवरवत्थाइं परिहिए - ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सीहाए उद्धयाए जइणाए छेयाए दिव्वाए देवगतीए जेणामेव जंबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे, जेणामेव दाहिणड्ढभरए रायगिहे नगरे पोसहसालाए अभय कुमारे तेणामेव उवागच्छति, उवागच्छिता अंतरिक्खपडिवन्ने दसद्धवन्नाई सखिंखिणियाई पवरवत्थाई परिहिए - अभयं कुमारं एवं वयासी-]
| अन्य पाठ इस प्रकार भी है - वह देव उत्कृष्ट, त्वरित, चपल, चण्ड, सिंह सम, उद्धत, दुर्धर्ष, निपुण तथा दिव्य गति से राजगृह की पौषधशाला में अभयकुमार के निकट आ आकाश में स्थित हो मधुरवाणी में बोला - ]
ARRIVAL OF SAUDHARMA GOD
46. At the end of the three day fast the seat of the friendly god, Saudharma, started trembling. The god came to know about all this
CHAPTER-1 UTKSHIPTA JNATA
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