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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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सूत्र ४३. तए णं सेणिए राया अभएणं कुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हट्टतुढे जाव अभयकुमारं सक्कारेति संमाणेति, सक्कारित्ता संमाणित्ता पडिविसज्जेति।
सूत्र ४३. राजा श्रेणिक अभयकुमार के ये वचन सुनकर प्रसन्न और तुष्ट हुए और सत्कार-सम्मान सहित उन्हें विदा किया। ____43. King Shrenik was pleased and satisfied hearing these encouraging words from Abhay Kumar and bid him farewell with due honour. अभय की देवाराधना
सूत्र ४४. तए णं से अभयकुमारे सक्कारिय-सम्माणिए पडिविसज्जिए समाणे सेणियस्स रनो अंतियाओ पडिनिक्खमइ। पडिनिक्खमित्ता जेणामेव सए भवणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणे निसन्ने।
तए णं तस्स अभयकुमारस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था-नो खलु सक्का माणुस्सएणं उवाएणं मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अकालडोहलमणोरहसंपत्तिं करेत्तए, णन्नत्थ दिव्वेणं उवाएणं। अत्थि णं मज्झ सोहम्मकप्पवासी पुव्वसंगतिए देवे महिड्डीए जाव सहासोक्खे। तं सेयं खलु मम पोसहसालाए पोसहियस्स बंभचारिस्स उम्मुक्कमणि-सुवण्णस्स ववगयमाला-वन्नग-विलेवणस्स निक्खत्तसत्थ-मुसलस्स एगस्स अबीयस्स दब्भसंथारोवगयस्स अट्ठमभत्तं परिगिण्हित्ता पुव्वसंगतियं देवं मणसि करेमाणस्स विहरित्तए। तते णं पुव्वसंगतिए देवे मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवे अकालमेहेसु दोहलं विणिहिइ।
सूत्र ४४. अभयकुमार तब श्रेणिक राजा से विदा ले अपने भवन में गये और सिंहासन पर बैठ कर चिन्तन करने लगे-“ऐसा लगता है कि दैवी उपाय के बिना केवल मानवोचित उपाय से छोटी माता के अकाल-दोहद की पूर्ति होना संभव नहीं है। ऐसे में अपने पूर्व भव के मित्र, महान् ऋद्धिधारक सौधर्मकल्प वासी देव का आह्वान करना होगा। अतः उचित होगा कि मैं ब्रह्मचर्य धारण कर सोने व रत्नों के आभूषणों का; माला, लेप आदि का तथा शस्त्रों का त्याग करके, एकाकी और सेवकविहीन हो पौषधशाला में जाकर (सूखी घास के) आसन पर बैठ तेले (अष्टम भक्त) की तपस्या सहित पौषध व्रत ग्रहण करूँ और अपने उस मित्र देव के चिन्तन में एकाग्र हो जाऊँ। ऐसा करने से वह देव आकर छोटी माता का दोहद पूर्ण कर देगा।"
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JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SUTRA
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